राजसत्ता एक्सप्रेस। सनातन धर्म की महिलाओं के लिए वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) का विशेष महत्व है। इस बार वट सावित्री व्रत 22 मई यानी कल है। मान्यता है कि इस दिन जो भी महिला अपने पति के लिए व्रत रखती है, उससे पति पर आए संकट चला जाता है और उसकी आयु भी लंबी होती है। ये भी कहते हैं कि अगर किसी के दांपत्य जीवन में कोई परेशानी भी चल रही होती है, तो वो भी वट सावित्री का व्रत रखने से दूर हो जाती है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए वट यानी बरगट के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं।
वट सावित्री व्रत के दिन सावित्री (Savitri) और सत्यवान (Satyavan) की कथा सुनने का विधान है। मान्यता है कि ये कथा सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, मृत्यु के देवता यमराज से सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आती है। बता दें कि शनि जयंती भी सावित्री व्रत के दिन ही मनाई जाती है।
वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त
इस बार वट सावित्री पूजा के शुभ मुहूर्त की बात करें तो पूरे दिन अमावस्था तिथि रहेगी। जो 21 मई रात 9 बजकर 34 मिनट पर लग जाएगी और अगले दिन 22 मई की रात 11 बजकर 8 मिनट पर रहेगी। जिसके बाद ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा तिथि लग जाएगी। ऐसे में सुहागिन महिलाओं सुबह से ही वट सावित्री की पूजा अर्चना कर सकती हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व
वट का अर्थ होता है बरगद का पेड़। इस व्रत में बरगद के पेड़ का बहुत महत्व है। कहते हैं कि इसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर सावित्री अपने मृत पति को यमराज से वापस पाया था। सावित्री को देवी का ही रूप कहा जाता है। ये भी कहा जाता है कि बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। मान्यता के अनुसार, ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में हैं, तो विष्णु इसके तने में और शिव उपरी भाग में रहते हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
पूजन सामग्री
इस व्रत के लिए सत्यवान-सावित्री की मूर्ति का आवश्यकता होती है। इसके अलावा धूप, मिट्टी के दीपक, घी, फूल, फल, 24 पूरियां, 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) बांस का पंखा, लाल धागा, सिंदूर, रोली कपड़ा, जल से भरे पात्र मुख्य पूजना सामग्री है।
व्रत विधि
सुबह उठकर महिलाएं स्नान करने के बाद नए वस्त्र पहने और सोलह श्रृंगार करें
निर्जला व्रत का संकल्प के साथ घर के मंदिर में पूजन करें।
अपने आंचल में अब 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) और 24 पूरियां रखकर वट वृक्ष पूजन के लिए जाएं।
12 पूरियां और 12 बरगद फल वट वृक्ष पर चढ़ा दें।
इसके बाद वट वृक्ष पर एक लोटा जल चढ़ा दें।
इसके बाद वट वक्ष को हल्दी, रोली और अक्षत लगाएं।
फल और मिठाई चढ़ाएं।
धूप-दीप से पूजन करें।
कच्चे सूत को वट वृक्ष में लपेटते हुए 12 बार परिक्रमा करें।
हर परिक्रमा पर एक भीगा हुआ चना चढ़ाएं।
परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा जरूर सुनें।
12 कच्चे धागे वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरे खुद पहन लें।
अब 6 बार माला को वृक्ष से बदलें और अंत में एक माला वृक्ष को चढ़ाएं।
एक माला अपने गले में पहन लें।
पूजा समाप्ति के बाद पति को बांस का पंख झलें और उनको पानी पिलाएं।
आखिर में 11 चने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली पानी से निगलकर अपने व्रत को तोड़ लें।