हाल ही में उत्तराखंड ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया, जब राज्य ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का निर्णय लिया। इस कदम पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने खुशी जताई और इसे संविधान निर्माताओं के सपने को साकार करने वाला बताया। उनका कहना था कि यह कदम न केवल देश के संविधान में निहित राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को लागू करता है, बल्कि यह लिंग समानता और सामाजिक सामंजस्य को भी बढ़ावा देगा।
उपराष्ट्रपति का संबोधन
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बयान राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में दिया। इस अवसर पर उन्होंने कहा, “आज का दिन एक शुभ संकेत है। उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता को अपनाकर संविधान के अनुच्छेद 44 को साकार किया है। यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों के लिए पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्देश देता है।”
धनखड़ ने आगे कहा, “उत्तराखंड सरकार की दूरदर्शिता की सराहना करते हुए उम्मीद जताई कि जल्द ही पूरा देश इस दिशा में कदम बढ़ाएगा।”
यूसीसी का विरोध करने वालों पर निशाना
उपराष्ट्रपति ने उन लोगों पर निशाना साधा जो समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “यह संविधान का निर्देश है और इसका विरोध करना अविवेकपूर्ण है। कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीयता को तिलांजलि देने में भी संकोच नहीं करते।” उनके अनुसार, यूसीसी केवल लिंग समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा और संविधान सभा की बहसों और सुप्रीम कोर्ट के फैसले इसे बार-बार आवश्यक ठहराते रहे हैं।
अवैध प्रवासियों पर व्यक्त की चिंता
उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने के बाद, उपराष्ट्रपति ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “देश में लाखों अवैध प्रवासी हैं, जो हमारे संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा, चुनावी प्रणाली को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्थिति अब और अधिक सहन नहीं की जा सकती।” उनके मुताबिक, इस समस्या का समाधान प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए।
युवाओं के लिए नई संभावनाएं
आर्थिक प्रगति के संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने भारत के पिछले दशक में बेमिसाल आर्थिक विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार और युवाओं के लिए सकारात्मक नीतियों की सराहना की। उन्होंने युवाओं को सरकारी नौकरी की सोच से बाहर निकलकर नए अवसरों की तलाश करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई आकांक्षी जिलों की पहल को भी उन्होंने सराहा, जो विकास को हर कोने तक पहुंचाने का प्रतीक है।
भारतीय परंपरा और संवाद की महत्ता
उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में भारतीय परंपरा में संवाद और सहमति की महत्ता को रेखांकित किया। उनका कहना था, “हमारी संस्कृति में समस्याओं का समाधान संवाद और विचार-विमर्श के माध्यम से होता है। चाहे जलवायु परिवर्तन हो या वैश्विक संघर्ष, समाधान सिर्फ संवाद और कूटनीति से ही संभव है।”
अनुच्छेद 370 पर डॉ. बी.आर. अंबेडकर की दृष्टि
अंत में, उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 पर डॉ. बी.आर. अंबेडकर की दृष्टि का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर अंबेडकर की इच्छा मानी गई होती, तो हमें उस भारी कीमत का सामना नहीं करना पड़ता जो हमें चुकानी पड़ी। उन्होंने भारत को एक समावेशी, सहिष्णु और अनुकूलनशील राष्ट्र बताते हुए संविधान निर्माताओं के सपने को साकार करने का ऐलान किया।