हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को मानी जाती है, जो फाल्गुन की अमावस्या तक रहता है। इसे विक्रम संवत भी कहा जाता है। हिंदू नव वर्ष के साथ ही चैत्र नवरात्र शुरू होते हैं, जिनमें माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। खैर, विक्रम संवत की बात करें, तो 30 मार्च 2025 से हम विक्रम संवत 2082 में प्रवेश कर चुके हैं, जो अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है। आइए आपको बताते हैं इसकी शुरुरआत किसने की थी।
क्या है विक्रम संवत (Vikram Samvat History and Significance)?
इतिहासकारों की मानें, तो इसकी शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने की थी। ऐसा माना जाता है कि काल गणना के लिए विक्रम संवत को सटीक कैलेंडर माना जाता है, जो सूर्य और चंद्र दोनों की गति पर आधारित होता है, जिसकी गणना एकदम सटीक होती है। तिथि, मुहूर्त आदि की गणना इसी के आधार पर की जाती है, लेकिन इसे समझना आसान नहीं है। इसलिए इसे नॉर्मली लागू नहीं किया है। हालांकि, नेपाल में विक्रम संवत ही प्रचलित है।
कैसे हुई विक्रम संवत की शुरुआत?
हालांकि, इतने पुराने कैलेंडर की कैसे शुरुआत हुई, यह सभी जानना चाहते हैं। तो बता दें कि हिंदू धर्म ग्रंथों में इसका जिक्र मिलता है। हिंदू धर्म के 18 पुराणों में से एक ‘ब्रम्हापुराण’ भी इसका जिक्र मिलता है। इसके अनुसार चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा को ही नए साल की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि, भारत में अंग्रेजी यानी कि ग्रेगोरियन कैलेंडर प्रचलित है, जिसकी शुरुआत ईसा मसीह के जन्म से मानी जाती है। जबकि विक्रम संवत, ईस्वी वर्ष से 57 वर्ष पहले शुरू हो चुका था।
किसने की थी विक्रम संवत की शुरुआत?
विक्रम संवत की शुरुआत प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने की थी। जैन ग्रंथ कल्काचार्य कथा की मानें, तो राजा विक्रमादित्य ने ही विक्रम काल की स्थापना की थी। इसी ग्रंथ के अनुसार राजा विक्रमादित्य ने किसी आकाश नाम के राजा पर विजय प्राप्त की थी। हालांकि, इसकी पुष्टि नहीं है कि वह राजा विक्रमादित्य शक था या हूण। हालांकि, पुरातत्विद वी.ए. स्मिथ और डी.आर. भंडारकर के अनुसार, चंद्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने के बाद कैलेंडर का नाम बदलकर ‘विक्रम संवत’ कर दिया था।