वर्ष 2024 के अगस्त महीने में वक्फ संशोधन बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा गया था, और इसके बाद 7 महीने बाद सरकार ने इसे एक नई रिपोर्ट के साथ फिर से संसद में पेश किया है। इस बार, सरकार ने जेपीसी की रिपोर्ट को आधार बना कर वक्फ संशोधन बिल पेश किया, लेकिन इसके बावजूद विपक्ष का विरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार ने बिल में विपक्ष की असहमति वाले हिस्सों को हटा दिया है, जिससे उनकी राय की अनदेखी की गई है।
वक्फ बिल में किए गए 14 बड़े बदलाव
जेपीसी की रिपोर्ट में इस बिल के 14 बड़े संशोधन किए गए हैं। इनमें कुछ अहम बदलावों में वक्फ को जमीन पर दावा करने के लिए कोर्ट जाने का अधिकार दिया गया है। इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों को नए एक्ट के लागू होने के बाद 6 महीने में WAMSI (वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम इंडिया) पर दर्ज करवाने की समय सीमा बढ़ाने की सिफारिश भी की गई है।
जेपीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वक्फ बोर्ड के संचालन में भी बदलाव किए गए हैं। पहले, वक्फ बोर्ड में केवल 2 बाहरी लोगों को शामिल किया जाता था, लेकिन अब रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके साथ ही राज्य सरकार के दो अधिकारी भी बोर्ड का हिस्सा होंगे।
विपक्ष का विरोध क्यों?
विपक्ष ने इस संशोधन बिल को लेकर दो मुख्य वजहों से विरोध जताया है।
1. पुराने नियमों में बदलाव
विपक्ष का पहला विरोध इस बात पर है कि जेपीसी ने पुराने नियमों में फेरबदल किया है। उदाहरण के लिए, अब वक्फ बोर्ड में 2 बाहरी लोगों के साथ राज्य सरकार के दो अधिकारियों को भी शामिल किया जाएगा। यह बदलाव विपक्ष को नापसंद है क्योंकि उन्हें लगता है कि इस तरह के संशोधनों से वक्फ की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा।
2. विपक्षी सिफारिशों को नजरअंदाज करना
दूसरी वजह विपक्ष का यह आरोप है कि सरकार ने उनके द्वारा दी गई 43 सिफारिशों को एक भी नहीं माना। इनमें से एक प्रमुख सिफारिश थी कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को भी जगह दी जाए, जो विपक्ष को ठीक नहीं लगता।
शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत का कहना है कि यदि किसी हिंदू धार्मिक संस्थान में मुस्लिम सदस्य नहीं होते, तो वक्फ में गैर-मुसलमानों को सदस्य बनाना गलत है। वे इस कदम को न्यायसंगत नहीं मानते। इसके अलावा, उन्होंने कलेक्टर को वक्फ बोर्ड में अधिकार देने की आलोचना की है, क्योंकि कलेक्टर राज्य सरकार का अधिकारी होता है और उसकी नियुक्ति पर विपक्ष को संदेह है।
विपक्ष की असहमति को लेकर चिंता
तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी इस बिल पर असहमति जताई है। उनका कहना था कि वक्फ बिल को लेकर गहन चर्चा होनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने यह भी बताया कि बिल में जो असहमति के नोट थे, उनका कुछ हिस्सा हटा दिया गया है, जो कि उनका कहना था, संविधान के खिलाफ है।
कल्याण बनर्जी के अनुसार, जमीन और संपत्ति से जुड़ा फैसला राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन वक्फ बिल में केंद्र सरकार ने राज्यों से राय नहीं ली। इससे उनका कहना है कि यह बिल असंवैधानिक हो सकता है।
सरकार को पेश करने में नहीं होगी परेशानी
इस संशोधित वक्फ बिल को पेश करने में सरकार को ज्यादा परेशानी नहीं होने वाली है। लोकसभा और राज्यसभा में एनडीए के पास पर्याप्त संख्या में सांसद हैं। लोकसभा में एनडीए के पास 296 सांसद हैं, जबकि राज्यसभा में भी लगभग 130 सांसद सरकार के समर्थन में हैं। हालांकि, पहले जिन दलों ने जेपीसी बिल के कुछ मसलों पर विरोध किया था, जैसे जेडीयू और टीडीपी, अब वे भी सरकार के समर्थन में आ गए हैं।
क्या है आगे का रास्ता?
यह सवाल उठता है कि क्या यह विवाद आगे बढ़ेगा या फिर सरकार इसे आसानी से पारित करवा लेगी? विपक्ष ने अपनी असहमति जताते हुए कई अहम मुद्दे उठाए हैं, जिन पर अब संसद में चर्चा होगी। फिलहाल, सरकार और विपक्ष के बीच टकराव जारी है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिरकार इस बिल पर क्या फैसला लिया जाएगा।