नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण खत्म होने से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने कन्याकुमारी जाकर विवेकानंद रॉक मेमोरियल में 45 घंटे की साधना की थी। साधना के बाद वो 1 जून को दिल्ली लौटे थे। कन्याकुमारी से दिल्ली लौटते वक्त पीएम मोदी ने विमान में एक लेख लिखा। मोदी ने अपने लेख में जो विचार जाहिर किए, वो पढ़िए।
मेरे प्यारे देशवासियो, लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व का एक पड़ाव एक जून को पूरा हो गया। तीन दिन तक कन्याकुमारी में आध्यात्मिक यात्रा के कितने सारे अनुभव, कितनी सारी अनुभूतियां हैं। मैं स्वयं में एक असीम ऊर्जा का प्रवाह महसूस कर रहा हूं। मुझे कन्याकुमारी में भारत माता के चरणों में बैठने का अवसर मिला। शुरुआती पलों में चुनाव का कोलाहल मन-मस्तिष्क में गूंज रहा था। रैलियों, रोड शो में देखे हुए अनगिनत चेहरे मेरी आंखों के सामने आ रहे थे। मेरी आंखें नम हो रही थीं…मैं शून्यता में जा रहा था, साधना में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही क्षणों में राजनीतिक वाद-विवाद, वार-पलटवार…आरोपों के स्वर और शब्द अपने आप शून्य में समाते चले गए। मेरे मन में विरक्ति का भाव और तीव्र हो गया…मेरा मन बाह्य जगत से पूरी तरह अलिप्त हो गया। इतने बड़े दायित्वों के बीच ऐसी साधना कठिन होती है, पर कन्याकुमारी की भूमि और स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा ने इसे सहज बना दिया। मैं सांसद के तौर पर अपना चुनाव भी काशी के मतदाताओं के चरणों में छोड़कर यहां आया था। इस विरक्ति के बीच, शांति और नीरवता के बीच, मेरे मन में भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए, भारत के लक्ष्यों के लिए निरंतर विचार उमड़ रहे थे। कन्याकुमारी के उगते हुए सूर्य ने मेरे विचारों को नई ऊंचाई दी, सागर की विशालता ने मेरे विचारों को विस्तार दिया और क्षितिज के विस्तार ने ब्रह्मांड की गहराई में समाई एकात्मकता का निरंतर एहसास कराया। ऐसा लग रहा था, जैसे दशकों पहले हिमालय की गोद में किए गए चिंतन और अनुभव पुनर्जीवित हो रहे हों।
साथियो, कन्याकुमारी का यह स्थान हमेशा से मेरे मन के अत्यंत करीब रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी…यह हर देशवासी के अंतर्मन में रची-बसी हमारी साझी पहचान है। कन्याकुमारी संगमों के संगम की धरती है। हमारे देश की पवित्र नदियां अलग-अलग समुद्रों में जाकर मिलती हैं और यहां उन समुद्रों का संगम होता है। और यहां एक और महान संगम दिखता है-भारत का वैचारिक संगम! यहां विवेकानंद शिला स्मारक के साथ ही संत तिरुवल्लूवर की विशाल प्रतिमा, गांधी मंडपम और कामराजर मणि मंडपम हैं। महान नायकों के विचारों की ये धाराएं यहां राष्ट्र चिंतन का संगम बनाती हैं। इससे राष्ट्र निर्माण की महान प्रेरणाओं का उदय होता है। जो लोग भारत के राष्ट्र होने और देश की एकता पर संदेह करते हैं, उन्हें कन्याकुमारी एकता का अमिट संदेश देती है।
साथियो, स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था-एवरी नेशन हैज अ मैसेज टू डिलीवर, अ मिशन टू फुलफिल, अ डेस्टिनी टू रीच। भारत हजारों वर्षों से इसी भाव के साथ सार्थक उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ता आया है। भारत की स्वतंत्रता से अन्य देशों को भी प्रेरणा और बल मिला, उन्होंने आजादी प्राप्त की। अभी कोरोना के कठिन कालखंड का उदाहरण भी हमारे सामने है, जब गरीब और विकासशील देशों को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, लेकिन भारत के सफल प्रयासों से तमाम देशों को हौसला और सहयोग मिला। आज भारत का गवर्नेंस मॉडल दुनिया के कई देशों के लिए एक उदाहरण बना है। सिर्फ 10 वर्षों में 25 करोड़ लोगों का गरीबी से बाहर निकलना अभूतपूर्व है। प्रो-पीपल गुड गवर्नेंस, आकांक्षी जिला, आकांक्षी प्रखंड जैसे अभिनव प्रयोगों की आज विश्व में चर्चा हो रही है। गरीब के सशक्तीकरण से लेकर लास्ट माइल डिलीवरी तक, समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को प्राथमिकता देने के हमारे प्रयासों ने विश्व को प्रेरित किया है। भारत का डिजिटल इंडिया अभियान आज पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण है कि हम कैसे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल गरीबों को सशक्त बनाने में, पारदर्शिता लाने में, उनके अधिकार दिलाने में कर सकते हैं। भारत में सस्ता डाटा आज सूचना और सेवाओं तक गरीब की पहुंच सुनिश्चित करके सामाजिक समानता का माध्यम बन रहा है। पूरा विश्व टेक्नोलॉजी के इस डेमोक्रेटाइजेशन को शोध दृष्टि से देख रहा है और बड़ी वैश्विक संस्थाएं कई देशों को हमारे मॉडल से सीखने की सलाह दे रही हैं।
जी-20 की सफलता के बाद से विश्व भारत की भूमिका को और अधिक मुखर होकर स्वीकार कर रहा है। आज भारत को ग्लोबल साउथ की एक सशक्त और महत्वपूर्ण आवाज के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। भारत की ही पहल पर अफ्रीकन यूनियन जी-20 ग्रुप का हिस्सा बना। साथियो, नए भारत का यह स्वरूप हमें गर्व और गौरव से भर देता है, लेकिन यह 140 करोड़ देशवासियों को उनके कर्तव्यों का एहसास भी करवाता है। अब एक भी पल गंवाए बिना हमें बड़े दायित्वों और बड़े लक्ष्यों की दिशा में कदम उठाने होंगे। हमें नए स्वप्न देखने हैं। हमें भारत के विकास को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा, और इसके लिए जरूरी है कि हम भारत के अंतर्भूत सामर्थ्य को समझें।
21वीं सदी की दुनिया आज भारत की ओर बहुत आशाओं से देख रही है। वैश्विक परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिए हमें कई बदलाव भी करने होंगे। हमारे रिफॉर्म 2047 के विकसित भारत के संकल्प के अनुरूप भी होने चाहिए। इसीलिए मैंने रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म का विजन सामने रखा। रिफॉर्म का दायित्व नेतृत्व का होता है। उसके आधार पर ब्यूरोक्रेसी परफॉर्म करती है और फिर जब जनता इससे जुड़ जाती है, तो हम ट्रांसफॉर्मेशन होते हुए देखते हैं। भारत को विकसित भारत बनाने के लिए हमें श्रेष्ठता को मूल भाव बनाना होगा। हमें स्पीड, स्केल, स्कोप और स्टैंडर्ड्स, चारों दिशाओं में तेजी से काम करना होगा। हमें मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ क्वालिटी पर जोर देना होगा, हमें जीरो डिफेक्ट-जीरो इफेक्ट के मंत्र को आत्मसात करना होगा। साथियो, हमें गर्व होना चाहिए कि ईश्वर ने हमें भारत-भूमि में जन्म दिया है। हमें प्राचीन मूल्यों को आधुनिक स्वरूप में अपनाते हुए अपनी विरासत को आधुनिक ढंग से पुनर्परिभाषित करना होगा। हमें पुरानी पड़ चुकी सोच और मान्यताओं का परिमार्जन भी करना होगा। हमें हमारे समाज को पेशेवर निराशावादियों के दबाव से बाहर निकालना है। नकारात्मकता से मुक्ति सफलता की सिद्धि तक पहुंचने के लिए पहली जड़ी-बूटी है। सकारात्मकता की गोद में ही सफलता पलती है।
हम अगले 25 वर्ष केवल और केवल राष्ट्र के लिए समर्पित करें। हमारे ये प्रयास आने वाली पीढ़ियों और आने वाली शताब्दियों के लिए नए भारत की सुदृढ़ नींव बनकर अमर रहेंगे। मैं देश की ऊर्जा को देखकर कह सकता हूं कि लक्ष्य अब दूर नहीं है। आइए, तेज कदमों से चलें…मिलकर चलें, भारत को विकसित बनाएं।