1998 का क्या है वो मामला जिसके लिए गिरफ्तार हुए हैं पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट

नई दिल्ली: गुजरात की सीआईडी ने बुधवार को निलंबित किए जा चुके आईपीएस अफसर संजीव भट्ट को 1998 के एक मामले में गिरफ्तार किया है. बता दें कि इस मामले को लेकर जुलाई में गुजरात हाई कोर्ट ने सीआईडी को एक एसआईटी (स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम) का गठन करने के आदेश दिए थे. जिसके बाद अकसर भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलने वाले संजीव भट्ट के खिलाफ कार्रवाई की गई है.

लेकिन 1998 का ये कौनसा मामला है जिसके चलते संजीव भट्ट को गिरफ्तार किया गया है.

इस मामले की शुरुआत एक वकील की गिरफ्तारी के साथ होती है.दरअसल गुजरात की बनासकांठा पुलिस राजस्थान के एक वकील सुमेरसिंह राजपुरोहित को मई 1996 में राजस्थान के पाली जिले से गिरफ्तारी कर लेती है. इस समय संजीव भट्ट बनासकांठा से एसपी थे.

सुमेर सिंह पर पालनपुर में स्थित एक हॉटल के कमरे में एक किलो से भी ज्यादा अफीम छुपाने के आरोप लगाए जाते हैं.जिसके बाद उनके खिलाफ नार्कोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था.

हालांकि होटल के मालिक ने पुलिस की पुछताछ के दौरान सुमेरसिंह पुरोहित को पहचानने से ही इंकार कर दिया. इसके बाद पुलिस को सुमेर सिंह को छोड़ना पड़ा. घटना के पांच महीने बाद वकील सुमेरसिंह राजपुरोहित ने पाली में एक एफआईआर दर्ज करवाया.

राजस्थान पुलिस की जांच में झूठा निकला था मामला

सुमेर राजपुरोहित की एफआईआर में तत्कालीन गुजरात हाई कोर्ट के जज जस्टिस जैन, उस समय बनासकांठा के एसपी संजीव भट्ट और उसके सहकारियों का नाम शामिल था. सुमेर राजपुरोहित ने इन पर अपने अपहरण और नार्कोटिक्स से जुड़े मामले में फंसाने का आरोप लगाया. राजपुरोहित ने आरोपों में कहा कि जस्टिस जैन अपनी बहन के लिए उस दुकान को खाली करवाना चाहते थे जिस पर राजपुरोहित के परिवार का कब्जा था. इसलिए उन्हें झूठे मामले में फंसाने की कोशिश की गई.

जब पुलिस ने राजपुरोहित की इस शिकायत की जांच की तो पता चला कि पालनपुर पुलिस ने सुमेर राजपुरोहित का अपहरण किया था. पुलिस साधारण कपड़ों में एक फेक नंबर की गाड़ी के साथ राजपुरोहित के कस्बे में उसका अपहरण करने गई थी. लेकिन मामले की गंभीरता को संभालते हुए सुमेर राजपुरोहित के घरवालों ने उनके साथी वकीलों की मदद से लोकल पुलिस पर मामले की जांच का दबाव बनाया.  जिसके बाद राजपुरोहित को छोड़ा गया था.

पूरे मामले की जांच में राजस्थान पुलिस ने जस्टिस जैन और संजीव भट्ट की कॉल डीटेल्स को भी सामने रखा. पुलिस को राजपुरोहित के परिवार और जस्टिस जैन के रिश्तेदारों के बीच हुई उस एग्रीमेंट की भी कॉपी मिली जिसमें लिखा हुआ था कि पुलिस राजपुरोहित को छोड़ देगी यदि वो दुकान को जस्टिस जैन की बहन के नाम कर दें.

जस्टिस जैन ने राजस्थान पुलिस की जांच को गलत बताया

1998 में जब राजस्थान पुलिस ने अपनी जांच को पूरा कर लिया तो गुजरात हाईकोर्ट में जस्टिस जैन द्वारा एक याचिका दायर की गई. बता दें कि तब तक वो गुजरात हाई कोर्ट से रिटायर हो चुके थे. हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका में जस्टिस जैन उनके खिलाफ दायर की गई राजस्थान के पाली में दायर की गई एफआईआर की जांच की मांग की. उन्होने कहा कि राजस्थान पुलिस ने राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री और पाली के बार एसोशिएशन के दबाव में आकर जांच की थी.

1999 में इसी तरह की एक और याचिका दायर की गई. इस याचिका को दायर करने वाले आईबी व्यास, संजीव भट्ट के सहकर्मी थे जिन्होने उस मामले की जांच की थी जिसमें कथित रूप से सुमेर राजपुरोहित पर अफीम छुपाने का आरोप लगा था.

कौन हैं पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट

संजीव भट्ट गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं. ये पहली बार तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल किया था. इस हलफनामें में उन्होने गोधरा कांड के बाद 27 फ़रवरी, 2002 की शाम में मुख्यमंत्री की आवास पर हुई उस बैठक में अपने मौजूद होने की बात कही थी, जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित रूप से पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को गुजरात दंगों को रोकने का प्रयास करने से दूर रहने और हिंदुओं को अपना ग़ुस्सा उतारने का मौक़ा दिया जाना को कहा था.

हालांकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित करवाई गई एक एसआईटी ने अपनी जांच में ये साबित किया था कि वो उस बैठक में मौजूद नही थे. इसके बाद 2015 में संजीव भट्ट को पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.

संजीव भट्ट अकसर भारतीय जनता पार्टी की आलोचना कर सुर्खियों में रहते हैं.

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