जैसा कि सर्वविदित है कि शनिदेव न्याय के देवता हैं। इसका आशय है कि वो हमारे कर्मफल का निर्धारण करते हैं। शनिदेव हर उस जातक पर कृपावान रहते हैं जो नीच कर्मों से खुद को दूर रखता है और नैतिकता के उच्च मापदंड स्थापित करता है। प्रिय पाठको आपने शनि की साढ़ेसाती के बारे में भी खूब सुना होगा, और अधिकाँश साढ़ेसाती को एक भय या की अभिशाप की दृष्टि से देखते होंगे। लेकिन ऐसा नहीं है, शनि की साढ़ेसाती किसी व्यक्ति के जीवन का वह समय होता है जिसमें उसे अपने कर्मों का हिसाब देना पड़ता है। आज मैं आपको शनि की साढ़ेसाती के बारे में बताती हूं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि की साढेसाती तीन प्रकार से होती हैं, पहली लग्न से, दूसरी चन्द्र लग्न या राशि से और तीसरी सूर्य लग्न से, उत्तर भारत में चन्द्र लग्न से शनि की साढे साती की गणना का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है।
मालिक की तरह हिसाब मांगने आते हैं
इस मान्यता के अनुसार जब शनिदेव चन्द्र राशि पर गोचर से अपना भ्रमण करते हैं तो साढेसाती मानी जाती है, इसका प्रभाव राशि में आने के तीस माह पहले से और तीस माह बाद तक अनुभव होता है। साढेसाती के दौरान शनि जातक के पूर्व कर्मों का हिसाब उसी प्रकार से लेता है, जैसे एक घर के नौकर को पूरी जिम्मेदारी देने के बाद मालिक कुछ समय बाद हिसाब मांगता है, और हिसाब में भूल होने पर या गलती करने पर जिस प्रकार से सजा नौकर को दी जाती है उसी प्रकार से सजा शनि देव भी हर प्राणी को देते हैं। और यही नही जिन लोगों ने अच्छे कर्म किये होते हैं तो उनको साढेशाती पुरस्कार भी प्रदान करती है, जैसे नगर या ग्राम का या शहर का मुखिया बना दिया जाना आदि.शनि की साढेसाती के आख्यान अनेक लोगों के प्राप्त होते हैं, जैसे राजा विक्रमादित्य, राजा नल, राजा हरिश्चन्द्र, शनि की साढेसाती संत महात्माओं को भी प्रताडित करती है, जो जोग के साथ भोग को अपनाने लगते हैं।
तीस साल में एक बार साढ़ेसाती
हर मनुष्य को तीस साल मे एक बार साढेसाती अवश्य आती है, यदि यह साढे साती धनु, मीन, मकर, कुम्भ राशि मे होती है, तो कम पीड़ादायक होती है, यदि यह साढेसाती चौथे, छठे, आठवें, और बारहवें भाव में होगी, तो जातक को अवश्य दुखी करेगी, और तीनो सुख शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक को हरण करेगी.इन साढेसातियों में कभी भूलकर भी “नीलम” नही धारण करना चाहिये, यदि किया गया तो वजाय लाभ के हानि होने की पूरी सम्भावना होती है।
नया काम हो सके तो टालें
कोई नया काम, नया उद्योग, भूल कर भी साढेसाती में नही करना चाहिये, किसी भी काम को करने से पहले किसी जानकार ज्योतिषी से जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिये.यहां तक कि वाहन को भी भूलकर इस समय में नही खरीदना चाहिये, अन्यथा वह वाहन सुख का वाहन न होकर दुखों का वाहन हो जायेगा.मैंने अपने अनुभव मे देखा है कि साढेसाती में कितने ही उद्योगपतियों का बुरा हाल हो गया, और जो करोडपति थे, वे रोडपति होकर एक गमछे में घूमने लगे.इस प्रकार से यह भी नौभव किया कि शनि जब भी चार, छ:, आठ, बारह मे विचरण करेगा, तो उसका मूल धन तो नष्त होगा ही, कितना ही जतन क्यों न किया जाये.और शनि के इस समय का विचार पहले से कर लिया गया है तो धन की रक्षा हो जाती है। यदि सावधानी नही बरती गई तो मात्र पछतावा ही रह जाता है।
हनुमान भक्ति सबसे प्रभावी
अत: प्रत्येक मनुष्य को इस समय का शनि आरम्भ होने के पहले ही जप-तप और जो विधान मैं आगे बताउंगी उनको कर लेना चाहिये. शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए रावण ने उन्हें अपनी कैद में पैरों से बांध कर सर नीचे की तरफ किये हुए रखा था ताकि शनि की वक्र दृष्टि रावण पर न पड़े।आज भी कई हिन्दू जाने अनजाने रावण की भांति प्रतीकात्मक तौर पर शनि प्रतिरूप को दुकानों या वाहनों में पैरों से बांध कर उल्टा लटकाते हैं। हालांकि पौराणिक सुझाव श्री हनुमान की भक्ति करने का है, क्योकि शनि देव ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि हनुमान भक्तों पर शनि की वक्र दृष्टि नहीं पड़ेगी।
शनि की साढ़ेसाती के लिए मंत्र जाप उपाय
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
इस मंत्र का जप करने से शनि की साढ़ेसाती का बुरा असर खत्म हो जाता है। ध्यान रखें कि 23,000 बार इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
श्री शनि बीज मंत्र
ॐ शं शनैश्चरायै नम:
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: ।।
इस मंत्र का जाप शनिवार को ही करें। साढ़ेसाती के भय से मुक्ति पाने का सबसे आसान उपाय है।
श्री शनि पौराणिक मंत्र
श्री नीलांजन समाभासं, रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम ।।
इस मंत्र का जाप करने से शनि की अतिशीघ्र प्रसन्नता सम्भव होती है।