देश के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी की किताब ‘प्रणब माईफादर एडॉटर रिमेम्बर्स का विमोचन 11 दिसंबर को होगा लेकिन इससे पहले ही किताब में कई बड़े खुलासे किए गए हैं। उन्होंने किताब में अपने पिता प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्तों का भी जिक्र किया हैं। उन्होंने लिखा कि दोनों की विचारधार अलग-अलग होने के बाद भी मोदी और प्रणबमुखर्जी की मुलाकात खास होतीथी। प्रधानमंत्री मोदी जब भी मेरे पिता से निजि तौर पर मिलते थे,उनके पैर जरूर छूते थे। वहीं, प्रणब मानते थे कि मोदी में लोगों की नब्ज समझने की जबरदस्त क्षमता है।
शर्मिष्ठा मुखर्जी की किताब ‘प्रणब माईफादर एडॉटर रिमेम्बर्स ने उन्होंने लिखा है कि जब पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब मेरे पिता राष्ट्रपति थे। लेकिन जब भी पीएम मोदी प्रणब मुखर्जी से निजी तौर पर मिलते थे तो वो उनके पैर छूते थे। पीएम मोदी प्रणब मुखर्जी को काफी पहले से जानते थे और दिल्ली में मॉर्निंग वॉक के दौरान दोनों टकराते थे और रोजाना वो प्रणब मुखर्जी के पैर छूते थे। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बीच अधिकारिक तौर पर मुलाकात होती है।
हालांकि इस दौरान भी निजी तौर पर प्रधानमंत्री बनने के बावजूद पीएम मोदी प्रणब मुखर्जी के पैर छूते थे। साल 2019 में चुनाव जीतने के बाद जब वो हमारे घर आए थे तब उन्होंने मेरे पिता के पैर छुए और आशीर्वाद लिया।
शर्मिष्ठा ने अपने पिता का हवाला देते हुए लिखा कि वे मानते थे कि नरेंद्र मोदी की राजनीतिक समझ काफी तेज है। वह कमाल के राजनेता हैं और सीखना चाहता है। उन्होंने लिखा कि प्रणब का मानना था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक के रूप में मोदी कट्टर देशभक्त और राष्ट्रवादी व्यक्ति है। शर्मिष्ठा लिखती है कि पिता के राष्ट्रपति पद से हटने केबाद भी मोदी कई बार उनसे मिलने आए। इस दौरान दोनों के बीचमजबूत तालमेल दिखाई दिया। दोनों की बातचीत के बीच हंसीके ठहाके भी गूंजते थे। मैंने पिता से उनकी बातचीत के बारे में पूछा तो वे हमेशा इसे राजनीतिक अड्डा (अनौपचारिकबातचीत) बताते थे।
शर्मिष्ठा ने किताब में लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी की घोषणा के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जीसे मुलाकात की थी। प्रधानमंत्री ने प्रणब से निर्णय का समर्थनकरने का अनुरोध किया, प्रणब सहमत हुए और ट्वीट के माध्यम से अपना समर्थन व्यक्त किया। हालांकि, उन्होंने विनिमय के लिए पर्याप्त नोटों की उपलब्धता और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को लेकर कुछ चिंताएं भी जताईं। प्रणब को डर था कि इससे मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली में लोगों का भरोसा कम हो जाएगा।