नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 2025 के पद्म अवार्ड्स की घोषणा करते हुए अमेरिका में जन्मी लेकिन भारत में एक अहम योगदान देने वाली सैली होल्कर का नाम पद्म श्री पुरस्कार के लिए चुना है। यह पुरस्कार सैली को भारतीय हैंडलूम उद्योग को फिर से जीवित करने और उसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए दिया गया है। सैली होल्कर की यह यात्रा वाकई प्रेरणादायक है।
सैली होल्कर का भारत में योगदान
हालांकि सैली होल्कर का जन्म अमेरिका में हुआ था, लेकिन उनका दिल हमेशा भारत के लिए धड़कता था। वह महेश्वरी हैंडलूम को नई पहचान दिलाने के लिए पिछले कई दशकों से काम कर रही हैं। सैली ने अपनी ज़िंदगी को इस पारंपरिक कला को पुनः जीवित करने के लिए समर्पित कर दिया। वह महेश्वर में रानी अहिल्याबाई होल्कर की विरासत से प्रेरित होकर वहां की पारंपरिक बुनाई को पुनर्जीवित करने का काम कर रही हैं।
महेश्वरी हैंडलूम को दी नई पहचान
महेश्वर का हैंडलूम, जो पहले धीरे-धीरे खत्म हो रहा था, सैली होल्कर के प्रयासों से फिर से जीवित हो गया। उन्होंने इस कला को न सिर्फ भारतीय बाजारों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान दिलाई। सैली ने महेश्वरी साड़ी और हैंडलूम को पारंपरिक डिजाइनों के साथ आधुनिकता का मिश्रण कर वैश्विक बाजार में एक नई पहचान दिलाई। इसके कारण आज महेश्वरी हैंडलूम न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
सैली ने यह साबित कर दिया कि पारंपरिक कला और व्यवसाय एक साथ मिलकर भी नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। महेश्वरी हैंडलूम को एक आधुनिक व्यापारिक रूप देने के बाद उन्होंने इसके महत्व को और बढ़ाया और एक नया आयाम दिया।
महेश्वर में स्थापित किया हैंडलूम स्कूल
सैली होल्कर के योगदान का सबसे बड़ा हिस्सा महेश्वर में स्थापित उनका हैंडलूम स्कूल है। इस स्कूल में पारंपरिक बुनाई तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाती है और बुनकरों को नया कौशल सिखाया जाता है। सैली के इस प्रयास से हजारों बुनकरों को रोजगार मिला है। विशेष रूप से 45 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को भी इस स्कूल से काम मिला।
सैली के नेतृत्व में 110 से अधिक करघों की स्थापना की गई, जिससे महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण मिला। इस स्कूल ने महेश्वरी हैंडलूम को एक नया जीवन दिया और इस उद्योग को एक स्थिरता प्रदान की। सैली होल्कर ने यह साबित कर दिया कि अगर किसी क्षेत्र में समर्पण और मेहनत की जाए तो उस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकती है।
महेश्वरी हैंडलूम की बढ़ती लोकप्रियता
सैली होल्कर ने महेश्वरी हैंडलूम को जिस तरह से एक व्यापारिक रूप दिया, वह वाकई काबिले तारीफ है। उनके प्रयासों के चलते महेश्वरी साड़ी और अन्य हैंडलूम उत्पाद अब न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी बेचे जा रहे हैं। सैली ने इसे एक ब्रांड के रूप में स्थापित किया, जिससे लाखों बुनकरों की जिंदगी बदल गई।
महेश्वरी हैंडलूम, जो कभी खत्म होने की कगार पर था, अब एक जीवित विरासत बन चुका है। सैली होल्कर के इस योगदान को देखते हुए उन्हें 2025 के पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनके द्वारा पारंपरिक भारतीय कला को संजोने, उसका पुनरुद्धार करने और उसे वैश्विक पहचान दिलाने के लिए दिया गया है।