कौन हैं मोहित पांडे? जिन्हें अयोध्या राम मंदिर के पुजारी के लिए चुना गया है

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के गर्भ गृह की प्राण-प्रतिष्ठा और मंदिर के अभिषेक के लिए सोमवार, 22 जनवरी 2024 की तारीख तय की गई है. वहीं 24 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कई जाने-माने लोग शामिल होंगे. वहीं प्रधानमंत्री के हाथों रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होगी. राम मंदिर में होने वाली पूजा के लिए पुजारी का चयन भी हो चुका है. खबरों के अनुसार, राम मंदिर में रामलला की पूजा के लिए पुजारी या पुरोहित मोहित पांडे को चुना गया है.

जानकारी के मुताबिक अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर के लिए पुजारियों के चयन के लिए बकायदा आवेदन मांगे गए थे. इसमें 3000 उम्मीदवारों ने आवेदन किया. चयन प्रक्रिया में पुजारियों के लिए मापदंड निर्धारित किए गए, जिससे सभी को गुजरना पड़ा. इस प्रक्रिया में 200 आवेदक पुजारी साक्षात्कार तक पहुंचे, जिसमें 50 को पुजारी के रूप में चुना गया. इन्हीं 50 पुजारियों में मोहित पांडे का भी नाम शामिल है. मोहित पांडे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से हैं.

मोहित ने सात साल तक अध्ययन किया और साथ ही तिरुपति स्थित तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम से संबद्ध श्री वेंकटेश्वर वैदिक विश्वविद्यालय से स्नातक कर शास्त्री की उपाधि हासिल की. इसके बाद 2023 में मोहित पांडे ने सामवेद का अध्ययन करते हुए मास्टर डिग्री हासिल की है.

वह रामानंदीय परंपरा के विद्वान भी हैं और उन्हें वेद, शास्त्र और संस्कृत में विशेषज्ञता भी प्राप्त है. मोहित पांडे को गाजियाबाद के दूधेश्वर विद्या पीठ में दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में महंत, पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व यूनाइटिड हिंदू फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज की देखरेख में विधा अध्यन का मौका भी मिला था.

मोहित पांडे के साथ ही अयोध्या राम मंदिर के मुख्य पुजारी 83 वर्षीय आचार्य सत्येंद्र दास भी चर्चा में बने हुए हैं. ये पिछले 31 सालों से राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी हैं और 1992 में बाबरी विध्वंस से लगभग 9 महीने पहले ही आचार्य सत्येंद्र दास यहां पुजारी के रूप में रामलला की पूजा कर रहे हैं. कहा जाता है कि, 1992 में जब इनकी राम जन्मभूमि मंदिर में पूजा के लिए इनकी नियुक्ति हुई थी, तब इन्हें वेतन के रूप में 100 रुपये मिलते थे. आचार्य सत्येंद्र दास जी साधु बनना चाहते थे. इसलिए इन्होंने अपना घर भी छोड़ दिया और 1958 में अयोध्या आ गए.

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