गॉडमैन टू टाइकून: ऐसा क्या है इस किताब में जिससे रामदेव इतना घबरा रहे हैं!

नई दिल्ली: देश भक्ति और आयुर्वेद के सहारे योगगुरु से बिजनेस टाईकून बन चुके रामदेव के लिए एक किताब मुसीबत का सबब बनी हुई है. प्रिंयका पाठक नारायण की लिखी किताब ‘गॉडमैन टू टाइकून’ जब से प्रकाशन की प्रक्रिया में थी  तब से बाबा रामदेव इसका प्रकाशन रुकवाने की कोशिश में हैं.

किताब के प्रकाशन और बिक्री पर 4 अगस्त 2017 से रोक लगी हुई थी जिसे ट्रायल कोर्ट ने अप्रैल में हटा दिया था. अब बाबा रामदेव ने इस किताब पर रोक के लिए दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ले रखी है। उन्होंने दलील दी है कि इस किताब के कारण उनकी छवि खराब हुई है और ये उनसे जुड़ी अफवाहों पर आधारित है. रामदेव के वकील, नीरज किशन कौल ने गुरूवार को जस्टिस अनु मल्होत्रा के सामने पक्ष रखते हुए कहा कि निचली अदालत का फैसला ख़ारिज होना चाहिए, जिसमें किताब के प्रकाशन और इसकी बिक्री की छोट दे दी गयी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 29 अगस्त की तिथि नियत की है।

अब किताब का फैसला तो कोर्ट ही करेगा लेकिन सवाल ये है कि प्रियंका पाठक नारायण की किताब गॉडमैन टू टाइकून में ऐसा क्या है जो रामदेव को इतना परेशान कर रहा है. इस किताब के बारे में बात करते हुए ‘द वायर’ को दिए एक साक्षात्कार में खुद लेखिका प्रियंका कहती हैं कि ये उनके खिलाफ या पक्ष में नही है. बल्कि उन्होने केवल रामदेव की कहानी लिखने का प्रयास किया है. कैसे एक सामान्य से इंसान ने जमीन से उठकर योग और आयुर्वेद का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया।

प्रियंका की इस किताब में रामदेव के बिजनेस मॉडल से लेकर उनसे जुड़े नीजी पक्षों को उभारने की कोशिश की गई है. इस कड़ी में प्रियंका ने रामदेव के नजदीक रहे और उन्हें जानने वाले लगभग हर इंसान से बातचीत की है और उसी के आधार पर ये किताब भी लिखी है. हालांकि रामदेव देशहित, स्वदेशी और भ्रष्टाचार मुक्त भारत जैसे सकारात्मक मुद्दों पर ही राय रखते हुए नजर आते हैं लेकिन उनसे जुड़े कई ऐसे विवाद भी हैं जो उनकी इस राष्ट्रवादी छवि के आड़े आ सकते हैं. गॉडमैन टू टाईकून में इन विवादों को भी लेखिका ने जगह दी है. शायद यही वजह है कि रामदेव किसी भी कीमत पर इस किताब पर रोक लगाने को आतूर हैं.

आश्रम को शिष्यों के हवाले कर लापता हो गए थे रामदेव के गुरु

रामदेव से जुड़े कई विवादास्पद मुद्दों में से एक मुद्दा उनके गुरू शंकर देव की संदिग्ध गुमशुदगी का भी है. हालांकि शंकर देव की गुमशुदगी पर 16 जून 2007 को शंकर देव के शिष्य और रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण ने थाना कनखल में शंकर देव की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस रिपोर्ट में शिकायत की गई थी कि शंकर देव कृपालु बाग आश्रम दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट आश्रम से लापता हैं. मामले में जब पुलिस को कुछ हाथ नही लगा तो ये केस सीबीआई को सौंप दिया गया. लेकिन सीबीआई भी शंकर देव को ना तो ढूंढ़ सकी औऱ न ही उनसे जुड़ी कोई और जानकारी उजागर कर पाई.

प्रियंका ने अपनी किताब में इस मामले जो लिखा है उससे शंकर देव के शिष्यों जिनमें रामदेव भी शामिल थे  उनके अपने गुरू के प्रति रवैया पर भी सवाल उठते हैं. प्रियंका के मुताबिक शंकर देव के पास एक फलों का बागान था जो उन्हें अपने गुरू से ही मिला था. इस बागान पर से किरायदारों को हटवा कर शंकर देव ने अपने शिष्यों को रख था. शंकर देव को उम्मीद थी कि वो बुढ़ापे में उनका ध्यान रखेंगे और हिंदु धर्म की गुरु-शिष्य परंपरा को ज़िंदा रखेंगे. लेकिन किताब के मुताबिक शंकर देव के सभी शिष्यों ने मिलकर एक ट्रस्ट का गठन कर लिया जो लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध भी था.

इस ट्रस्ट का पता शंकर देव का कृपालू आश्रम बाग हुआ, जिससे उनके शिष्यों को काफी फायदा भी हुआा था और वो आर्थिक रूप से काफी मजबूत हुए. लेकिन इस तरह आश्रम को मिली प्रसिद्धी से शंकर देव खुश नही थे और वो हरिद्वार की गलियों में भटकते रहते थे. किताब में ये भी बताया गया है कि शंकर देव को एक गंभीर बीमारी स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस हो गई थी जो काफी दर्दनाक थी. इस बीमारी में शंकर देव के स्थानीय डॉक्टर के हवाले से प्रियंका ने बताया है कि उन्हें ईलाज के लिए किसी बड़े अस्पताल नही ले जाया गया था. जिसके बाद जुलाई 2007 में वो एक चिट्ठी छोड़कर कहीं चले गए.

रामदेव के ट्रस्ट को आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने का लाइसेंस देने वाले स्वामी योगानंद की मौत की अनसुलझी गुत्थी

न केवल शंकर देव बल्कि रामदेव के बेहद करीब रहने वाले कई लोगों की संदिग्ध हालातों में हुई मौत का जिक्र भी प्रियंका ने किया है. सबसे पहले स्वामी योगानंद जिन्होने रामदेव के दिव्य योग मंदिर को 1995 में आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने के लिए अपना लाइसेंस इस्तेमाल करने के लिए दिया था वो भी शामिल हैं. 2003 में रामदेव के ट्रस्ट ने योगनंद के लाइसेंस का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था.जिसके बाद 2004 में योगानंद की संदिग्ध हालात में हरिद्वार के अपने घर में खून से लथपथ अवस्था में मृत पाए गए। इस मामले की गुत्थी नहीं सुलझ सकीय और 2005 में इस केस को बंद कर दिया गया था.

रामदेव ने नही होने दिया था राजीव दीक्षित की मौत का पोस्टमार्टम

2010 में फिर एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें रामदेव के करीबी और उनके मेंटर रह चुके राजीव दिक्षित की भी अचानक से मौत हो गई. माना जाता है कि 43 साल के राजीव दीक्षित कार्डिएक अरेस्ट के चलते बाथरूम में गिर पड़े थे. लेकिन उनके दूसरे साथियों ने बताया था कि उनकी त्वचा में कुछ अजीब सी तब्दीली देखने को मिली थी , जैसा आमतौर पर जहर से हुई मौत के मामले में होता है। जिसके चलते पोस्टमार्टम की मांग भी हुई. इस पर रामदेव ने धार्मिक कारणों का हवाला देते हुए पोस्टमार्टम की मांग को खारिज करवा दिया था और राजीव दीक्षित का अंतिम संस्कार करवा दिया गया.

ये सब वो मामले हैं जो यकीनन रामदेव की उस छवि के बिल्कुल परे हैं जिसके चलते उनका करोड़ों का करोबार खड़ा हुआ है. ये मामले उनके नीजी हितों के भी आड़े आ रहे हैं और इनका जिक्र प्रियंका की किताब ‘गॉडमैन टू टाइकून’ में है इसलिए रामदेव हर उस मुमकिन पैंतरे को अाजमा रहे हैं जिससे इस किताब पर प्रतिबंध लग जाए.

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