सावन के महीने में ही क्यों करते हैं कांवड़ यात्रा?

Kanwar Yatra 2018: सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्‍व है. इस महीने के आरंभ से ही लाखों की संख्‍या में लोग कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं. फिर शुद्ध जल से अपने ईष्‍ट देव का जलाभिषेक कर यात्रा पूरी करते हैं. पर क्‍या आप जानते हैं क‍ि इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई.

ऐसे शुरू हुई  कांवड़ यात्रा की पंरपरा 

पुराणों के अनुसार, भगवान परशुराम शिव जी के उपासक बताए गए हैं. उन्‍होंने शिव पूजा के लिए भोलेनाथ का मंदिर बनवाया था. उन्‍होंने कांवड़ में गंगाजल भरा था और जल से शिव जी का अभिषेक किय. इसी दिन से कांवड़ यात्रा की पंरपरा की शुरुआत मानी गई है.

इसके अलावा एक और कहानी बताई जाती है. जब समुद्र मंथन हुआ तब उसमें से विष निकला था. इसे शिव ने पिया था. इस विष को कम करने के लिए गंगा जी को बुलाया गया. तभी से सावन के महीने में शिव जी को गंगा जल चढ़ाने की पंरपरा बनी.

KawadYatra

क्या है कांवड़ यात्रा ?

सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा में जलाभिषेक का काफी खास महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि श्रावण मास में भोलेनाथ की पूजा करने से विशेष फल मिलता है. सावन के महीने में भगवान शिव को खुश करने के लिए भक्तों द्वारा कई तरीके अपनाए जाते हैं. इन्हीं तरीकों में से एक है कांवड़ यात्रा.

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सावन के महीने में शिव भक्त केसरिया कपड़े पहनकर कांवड़ के माध्यम से गंगा जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए नंगे पांव निकल पड़ते हैं. इन्हीं भक्तों को कांवड़ियों के नाम से जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि कांवड़ लाने से भगवान शिव भक्तों से प्रसन्न होते हैं. आपको बता दें कि कांवड़ यात्रा में उम्र की कोई सीमा नहीं होती है. इस यात्रा में बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर उम्र के लोग शामिल रहते हैं.

सावन में ही क्यों करते हैं कांवड़ यात्रा ?

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान किया था और उस विष को अपने कंठ में ही रोक लिया था. जिसके चलते उनका शरीर जलने लगा था. भगवान शिव के जलते शरीर को देखकर देवताओं ने उनके ऊपर जल अर्पित किया. जिससे उनका शरीर शीतल हो गया. इसके बाद से ही भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए भक्त उनका जलाभिषेक करने लगे और देखते ही देखते कांवड़ यात्रा शुरू हो गई.

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कुछ पंडितों का यह भी मानना है कि पहली बार भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगा का पवित्र जल लाकर भगवान का जलाभिषेक किया था. और इसी के बाद से कांवड़ की परंपरा शुरू हुई.

क्‍या हैं नियम?

इस यात्रा के नियम काफी सख्‍त होते हैं. ऐसा कहा जाता है कि अगर कांवड़िए ने नियमों का पालन नहीं किया तो भगवान रुष्‍ट हो जाते हैं और उसे यात्रा का पूरा फल नहीं मिलता. जानें इन नियमों के बारे में-

♦ यात्रा में पहला नियम होता है नशे की मनाही. शराब आदि का सेवन नहीं कर सकते.
♦  नशीले पदार्थों के अलावा मांस का सेवन भी वर्जित माना गया है.
♦ कांवड़ को जमीन पर रखने की मनाही होती है. अगर कहीं रुकना है तो पेड़ आदि ऊंचे स्‍थानों पर इसे रख सकते हैं.
♦ चमड़े से बने सामानों या कपड़ों को पहनना मना है. सात्विक भोजन करने का नियम है.
♦ यात्रा में भोलेनाथ का नाम जपने की बात कही जाती है. ‘हर हर महादेव’ जैसे नारे लगने चाहिए.
♦ यात्रा को पैदल करने का विधान है. अगर कोई मन्‍नत मांगी है और उसे पूरी होने पर यात्रा कर रहे हैं तो मन्‍नत के अनुसार यात्रा होनी चाहिए.

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