22 जनवरी को राम मंदिर का उद्गाटन किया जाना है, जिसमें शामिल होने के बाबत केंद्र सरकार की ओर से सभी गणमान्यों को आमंत्रण पत्र भेजा गया है, लेकिन अब इसे लेकर भी सियासत शुरू हो चुकी है। खैर, सियासत अपनी जगह है, लेकिन राम भक्तों के बीच राम मंदिर के बारे में जानने की आतुरता अपने चरम पर पहुंच चुकी है कि आखिर इसका निर्माण किस शैली और किस ढंग में हुआ है?
मंदिर निर्माण में किन सामाग्रियों का उपयोग हुआ? किसकी क्या भू्मिका रही है? अब आगे कि क्या प्रक्रिया रहने वाली है। इन सभी सवालों के बारे में जानने की आतुरता राम भक्तों में अपने चरम पर पहुंच चुकी है। वहीं, इस रिपोर्ट में हम आपको राम मंदिर निर्माण से जु़ड़ी एक ऐसे तथ्य के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप दंग रह जाएंगे।
दरअसल, राम मंदिर निर्माण में लोहे की एक भी सामाग्री का उपयोग नहीं किया गया है। वास्तुशास्त्र का मानना है कि राम मंदिर निर्माण में एक भी लोहे का उपयोग नहीं किया गया। मंदिर में तीन तल हैं। प्रथम तल पूरी तरह से संपन्न हो चुका है। वहीं, राम मंदिर की लंबाई 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट है। राम मंदिर को परंपरागत नागर शैली में बनाया गया। वास्तुशास्त्रों का दावा है कि किसी भी मंदिर के निर्माण में लोहे का उपयोग किए जाने से उसकी आयु कम हो जाती है, इसलिए राम मंदिर के निर्माण में किसी भी प्रकार के लोहे का उपयोग नहीं किया गया है, जिसे लेकर बड़ी संख्या में आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं।
आपको बता दें कि प्राचीन काल में मंदिरों का निर्माण नागर शैली के तहत किया जाता था, जिसे ध्यान में रखते हुए राम मंदिर का निर्माण नागर शैली में बनाया गया। नागर शैली में बनाए गए मंदिरों में प्राय: चार कक्ष होते हैं, जिसमें गर्भ गृह, जगमोहन, नाट्य मंदिर और भोग मंदिर शामिल होते हैं। इस मंदिर का कनेक्शन हिमालय विंध्य की भूमि के बीच रहा है। बता दें कि खजुराहो मंदिर, सोमनाथ मंदिर और कोणार्क के मंदिर भी नागर शैली में भी बनाए गए थे। इस शैली में मुख्य रूप से मंदिर के दो हिस्से होते हैं।
उधर, राम मंदिर का निर्माण 1000 साल की आयु को ध्यान में रखते हुए किया गया। वहीं, बीच में कभी मंदिर के निर्माण में किसी भी प्रकार के मरम्मत की जरूरत नहीं पड़ेगी। ध्यान दें, मंदिर के निर्माण में सीमेंट, कंक्रीट और लोहे का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया गया है।