वाराणसी आस्था का संगम हैं, यहां काशी विश्वनाथ रूप मे भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं. यहां की बात ही निराली है. यह पर हजारों साल पुराने कई सारे घाट हैं, इनमें से एक घाट दशाश्वमेध घाट भी है. यह घाट खुद में कुछ कहानियां समेटे हुए है.
दारागंज के दशाश्वमेध घाट का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है. इस घाट पर धर्मराज युधिष्ठिर से 10 यज्ञ कराए थे. इसके पहले ब्रह्माजी ने भी यहां यज्ञ किया था. यही कारण है कि इस घाट का दशाश्वमेध घाट कहा जाता है.
रुद्रसर भी है इस घाट का नाम
दशाश्वमेध घाट को पुराणों में रुद्रसर कहा गया है. मान्यता है कि यहां पर भगवान ब्रह्मा ने दस अश्वमेघ यज्ञ किए थे. इसके बाद ही इसको दशाश्वमेध घाट कहा जाने लगा. इस घाट पर आज भी लोग गंगा स्नान करने आते हैं. इस घाट पर स्नान करने से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं.
आस्था के हैं केंद्र
सुबह से ही इन घाटों पर पूजा-अर्चना की शुरुआत हो जाती है. शाम के ढलते ही गंगा आरती का मनमोहक दृश्य आपको देखने को मिलता है. इस घाट पर हिंदू धर्म, जैन और बौद्ध धर्म से जुड़े लोग अपने अनुष्ठान करते हैं. दशाश्वमेध घाट में गंगा नदी को जीवनदायिनी और शुद्धता की देवी के रूप में पूजा जाता है.