2019 लोकसभा चुनावों के लिए उत्तरप्रदेश के सियासी गठबंधन सपा-बसपा में अब आरएलडी भी शामिल है. अखिलेश यादव ने कहा कि आरएलडी को मथुरा और बागपत सीट चाहिए तो वो हमने उनको दे दी. और अब गठबंधन का रास्ता बिल्कुल साफ है लेकिन अखिलेश यादव कहीं भूल तो नहीं गए कि मथुरा की सीट उनके गठबंधन के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है.
मथुरा सीट का सियासी इतिहास
आरएलडी पार्टी के युवराज जयंत चौधरी ने मथुरा की इसी सीट से साल 2009 में राजनीतिक डेब्यू किया था और उस वक्त जीत भी हासिल की थी. 2009 में आरएलडी का बीजेपी के साथ गठबंधन था. जयंत के खिलाफ बसपा के श्याम सुंदर शर्मा मैदान में उतरे थे जिनको जयंत चौधरी से हार का सामना करना पड़ा था. जयंत को जहां 58% वोट प्राप्त हुए थे वहीं, श्याम सुंदर को महज 28% की वोट हासिल हुए थे.
2014 में हुए मुजफ्फरदंगों के कारण मुसलमानों और जाटों में नफरत की दीवार पैदा हो गई थी. वहीं, चुनाव में सपा, बसपा और आरएलडी अलग अलग मैदान में उतरे थे, जिसका सारा फायदा बीजेपी को मिला था और तीनों दलों का सफाया करते हुए बीजेपी को मथुरा सीट पर जीत हासिल हुई थी. लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जीत मिली और वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ने ही सीट पर कब्जा किया था. सांप्रादियक तनाव का खामयाजा जयंत चौधरी ने उठाय़ा और हेमा मालिनी से तीन लाख से भी अधिक वोटों से हार का सामना किया.
मथुरा सीट का गणित
राम मंदिर आंदोलन के बाद से मथुरा सीट पर साल 1991 से 2004 तक बीजेपी की अच्छी पकड़ रही है. 2004 में कांग्रेस ने ये सीट हासिल की थी और 2009 में बीजेपी गठबंधन के साथ आरएलडी के जयंत चौधरी ने सीट पर कब्जा किया था. उसके बाद 2014 में हेमा मालिनी को जीत मिली.
2014 में हेमा मालिनी को 5,74,663 वोट मिले थे.
जयंत चौधरी को 2,43,890 वोट मिले थे.
बीएसपी के योगेश कुमार को 1,73,572 वोट मिले.
वहीं, सपा के चंदन सिंह को 36,673 वोट हासिल हुए थे.
अब वोटों का हिसाब लगाया जाए तो तीनों मिलकर भी बीजेपी से करीब 1 लाख वोटों से पीछे हैं.हालांकि इस बार खबरें हैं कि मथुरा सीट पर जयंत चौधरी की पत्नी चारु चौधरी अपनी किस्मत आजमा सकती है.
सपा-बसपा को आरएलडी क्यों जरुरी है?
पश्चिमी यूपी में आरएलडी की जाट वोटरों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. जाट वोट बैंक को सपा-बसपा गठबंधन नजरअंदाज नहीं कर सकता. पश्चिमी यूपी में 17 फीसदी आबादी जाट समुदाय की है. इसके अलावा विधानसभा की करीब 77 सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव माना जाता है. किसी पार्टी के तरफ इनका झुकाव 50 सीटों के नतीजों को प्रभावित करता है.