सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वर्कप्लेस पर महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) के सदस्यों के कार्यकाल की सुरक्षा और उन्हें बदले की कार्रवाई से बचाने की मांग की गई है। कोर्ट ने इसे एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए सरकार को नोटिस जारी किया, लेकिन इस मामले में अभी तक कोई भी सरकारी पक्ष पेश नहीं हुआ है, और न ही कोई जवाब आया है।
याचिकाकर्ताओं की दलील: ICC सदस्य महिलाओं को मिलनी चाहिए नौकरी की सुरक्षा
याचिकाकर्ताओं, जो आईसीसी की पूर्व सदस्य जानकी चौधरी और पूर्व पत्रकार ओल्गा टेलिस हैं, का कहना है कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं को उस स्तर की सुरक्षा नहीं मिलती, जो सरकारी वर्कप्लेस पर होती है। उनका दावा है कि जब महिला कर्मचारी किसी कंपनी में यौन उत्पीड़न की शिकायत करती हैं और आईसीसी का फैसला मैनेजमेंट के खिलाफ जाता है, तो उन्हें कई बार बिना किसी कारण के नौकरी से निकाल दिया जाता है। इसके बदले उन्हें कुछ महीनों का वेतन दिया जाता है, लेकिन इसके बाद उन्हें बेरोजगार कर दिया जाता है।
बर्खास्तगी और बदले की भावना से उत्पीड़न
याचिका में यह भी कहा गया है कि ICC के सदस्यों को निष्पक्ष फैसले लेने में मुश्किलें आती हैं, क्योंकि यदि वे प्राइवेट कंपनी के खिलाफ फैसला देती हैं, तो उन्हें बर्खास्तगी, डिमोशन या फिर बदले की भावना से उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में आईसीसी के सदस्य अपने निर्णयों में संतुलन बनाए रखने में असमर्थ हो जाते हैं, क्योंकि वे डरते हैं कि कहीं उन्हें नौकरी से निकाल ना दिया जाए।
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है, और इस पर विस्तार से विचार किया जाएगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह इस मामले की कॉपी सॉलिसिटर जनरल को दें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अगले सुनवाई में कोई भी सरकारी पक्ष पेश नहीं होता, तो वे एक न्याय मित्र (amicus curiae) नियुक्त कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जारी किया नोटिस, अगले सप्ताह होगी अगली सुनवाई
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से यह साफ हो गया है कि महिला कर्मचारियों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के मामलों को गंभीरता से लिया जा रहा है। कोर्ट का मानना है कि यह मामला महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी, जब सरकार को जवाब देने का एक और मौका दिया जाएगा।
महिला कर्मचारियों को मिलनी चाहिए समान सुरक्षा
याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतों का निष्पक्ष तरीके से निपटारा किया जाए और आईसीसी के सदस्यों को उनके फैसलों पर कोई दबाव न डाला जाए। इसके साथ ही, महिला कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कंपनियों को भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, ताकि वे महिला कर्मचारियों के खिलाफ किसी भी तरह की बदले की कार्रवाई न कर सकें।
आईसीसी के सदस्य क्यों नहीं सुरक्षित?
दरअसल, इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) का गठन महिला कर्मचारियों के यौन उत्पीड़न से बचाव के लिए किया गया है। हालांकि, प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के लिए यह समितियां पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। कई बार यह सामने आया है कि जब किसी कर्मचारी ने यौन उत्पीड़न की शिकायत की है और आईसीसी ने इसके पक्ष में फैसला दिया, तो उन्हें उनके ही कामकाजी स्थान पर दबाव का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में आईसीसी के सदस्यों को भी डर होता है कि कहीं उन्हें बदले की कार्रवाई का शिकार न होना पड़े।
क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहा जाना कि यह मामला महिला कर्मचारियों के अधिकारों से जुड़ा है, यह साबित करता है कि न्यायालय वर्कप्लेस पर महिलाओं के लिए समान अधिकार और सुरक्षा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। कोर्ट का कहना है कि महिलाओं को अपने कामकाजी स्थान पर सुरक्षा का पूरा अधिकार होना चाहिए, और इसे सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।
महिला कर्मचारियों के लिए यह याचिका एक अहम कदम है, क्योंकि इससे उन समितियों के अधिकारों को लेकर एक नई दिशा मिलेगी जो महिलाओं के यौन उत्पीड़न की शिकायतों का निवारण करती हैं।