बीजेपी की वरिष्ठ नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अचानक ये कहकर सब को चौंका दिया है। कि वो 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। जिसके पीछे उन्होंने अपने स्वास्थ्य को मुख्य कारण बताया है। सुषमा स्वराज पार्टी की पहली महिला नेता हैं, जो विदुषि और तेवर वाले भाषणों से सदन और जनता के दिलों पर राज करती रही हैं।
2019 में सुषमा के अलावा बीजेपी के कुछ और नेता हैं, जो कभी राष्ट्रीय फलक पर चमकते थे। जिनका अब अस्त हो जायेगा। यानी अब सदन में दिखाई नहीं देंगे।
ये वो नेता हैं, जो अपने लिए कम दूसरों के लिए ज्यादा प्रचार प्रसार करते थे। उनको सुनने के लिए लोग सैकड़ों दौड़े चले आते थे। पार्टी की उनके बिना कल्पना नहीं की जा सकती थी। कुछ तो ऐसे हैं जो पार्टी की नींव रखने में महती भूमिका में थे। या यूं कहें कि उनके बिना बीजेपी की कल्पना करना भी बेइमानी है। लेकिन वक्त के साथ उनका सितारा डूब रहा है। उम्र के ऐसे पड़ाव पर हैं, जहां से युवा हो रही बीजेपी में राजनीतिक रूप से फिट नहीं बैठते। ऐसे में उनकी उपयोगिता तो है, लेकिन सक्रिय राजनीति में अप्रसांगिक हो रहे हैं।
उम्रदराज नेताओं की छुट्टी तय
इन बीजेपी नेताओं के संटिंग लाइन में जाने के पीछे संघ की योजना है. जिसके तहत वो 75 पार नेताओं को मार्ग दर्शक मंडल में भेज रहा है. इनमें भाजपा लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, भुवनचंद्र खंडूड़ी, शांता कुमार, करिया मुंडा, कलराज मिश्र जैसे प्रमुख नाम हैं. सुषमा स्वराज ने हाल में स्वास्थ्य संबंधी कारणों से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी. हालांकि उनके राज्यसभा में आने के रास्ते खुले हैं. वित्तमंत्री अरुण जेटली पहले से ही राज्यसभा में हैं. वहीं बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व और संघ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की भूमिका में बड़ा बदलाव करने के मूड में है.
अलग-अलग प्रदेश ने नेताओं का लिस्ट में नाम
कई राज्यों के प्रमुख चेहरे भी हो सकते हैं चुनावी राजनीति से दूर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद शांता कुमार के भी अगला लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावना कम है. उत्तराखंड के भुवनचंद्र खंडूड़ी, झारखंड के करिया मुंडा व बिहार के हुकुमदेव नारायण यादव की जगह भी भाजपा नए चेहरों को मौका दे सकती है.
संघ के प्लान के मुताबिक हो रहा है परिवर्तन
वाजपेई सरकार जाने के बाद संघ ने 2009 लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी का कलेवर बदलने की कवायद करनी शुरु कर दी थी. साथ ही नई पीढ़ी के नेताओं को आगे बढ़ाने का काम किया. जिसकी शुरुआत नेता प्रतिपक्ष लाल कृष्ण आडवाणी को हटा कर सुषमा स्वराज को बनाकर की. बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी को और 2013 में प्रधानमंत्री प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को बनाया. वहीं कुछ ही दिनों बाद अमित शाह को पार्टी की कमान सौंप दी गई.
लालकृष्ण अडवाणी
सात दशक का लंबा करियर। जनसंघ से भाजपा के शीर्ष तक पहुंचे। वाजपेयी सरकार में देश के उप प्रधानमंत्री रहे। मौजूदा समय में गुजरात के गांधीनगर से सांसद है।
मुरली मनोहर जोशी
1953 में गो सुरक्षा आंदोलन के साथ सियासी सफर की शुरुआत की। इलाहाबाद, वाराणसी और अब कानपुर से सांसद। भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके।
कलराज मिश्र
कलराज मिश्र 1963 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप में राजनीतिक जीवन शुरू किया। जनता पार्टी सरकार में 1978 को सबसे कम उम्र में राज्यसभा सदस्य बने और अबतक तीन बार राज्यसभा पहुंचे। मोदी सरकार में लघु एवं सूक्ष्म उद्योग मंत्रालय के मंत्री रहे।
भुवन चंद्र खंडूरी
36 साल सेना में सेवा देने के बाद 1990 के दशक में भाजपा में आए। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के साथ-साथ पांच बार लोकसभा का सांसद रह चुके हैं। मौजूदा समय में गढ़वाल से सांसद हैं।
शांता कुमार
1963 में पंचायत स्तर से राजनीति शुरू की और 1972 में पहली बार हिमाचल विधानसभा के सदस्य बने। 1977 में राज्य के मुख्यमंत्री रहे। तीन बार लोकसभा सांसद और केंद्र में मंत्री रहे।
करिया मुंडा
झारखंड के आदिवासी नेता हैं व 1977 में पहली बार लोकसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री बने। कुल सात बार निम्न सदन के सदस्य रहे। 15वीं लोकसभा के उपाध्यक्ष की भूमिका भी निभा चुके।
हुकुमदेव नारायण यादव
1960 में बिहार के मधुबनी जिले में ग्राम पंचायत से राजनीति शुरू की। पांच बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं। मौजूदा समय में मधुबनी सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे। केंद्र में मंत्री भी रहे।
बिजॉय चक्रवर्ती
जनता पार्टी से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाली बिजॉय चक्रवर्ती को 13वीं लोकसभा के दौरान उन्हें पार्टी से पहली बार टिकट मिला। उन्होंने भाजपा के टिकट पर गुवहाटी से जीत दर्ज की। वाजपेयी सरकार में जल संसाधन राज्य मंत्री थी। अभी गुवहाटी से सांसद हैं।