सोनिया गांधी का आज72वां जन्मदिन है. सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन है. और कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष भी रह चुकी है. इटली के ट्यूरिन शहर से भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक घराने की बहू बनने तक का सोनिया का सफर अपने आप में एक कथा है.
सोनिया और राजीव एक रेस्टोरेंट ंमें मिले थे. चार्ल्स एंटोनी बताते है कि उस दिन सोनिया अकेल ही रेस्टोरेंट आई थी. रेस्टोरेंट पूरी तरह से भरा हुआ था. उसी रेस्टोरेंट में राजीव अपने दोस्त का इंतजार कर रहे थे. चार्ल्स एंटोनी वार्सिटी रेस्टोरेंट के कहते है कि, लंच का वक्त था और रेस्टोरेंट में मेरे पास उनको बैठाने के लिए कोई जगह नहीं थी. राजीव अपने दोस्त एलेक्सिस के इंतजार में राउंड टेबल पर अकेले बैठे थे सो मैंने राजीव से पूछा कि तुम्हें, टेबल की दूसरे और एक लड़की के साथ बैठने में ऐतराज तो नहीं. राजीव ने कहा- नहीं, बिल्कुल नहीं.
राजीव और सोनिया का रिश्ता इसी रेस्टोरेंट से शुरू हुआ था. दोनों के रिश्ते में काफी उतार चढ़ाव आए. दोनों ने जब शादी करने का फैसला किया तो उन्हें अपने घरवालों को समझाना काफी मुश्किल हुआ. राजीव भारत देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे थे तो सोनिया इटली के एक साधारण से परिवार की लड़की थी.
शादी से पहले ही सोनिया को भारत आना था. सोनिया 13 जनवरी 1968 को सोनिया दिल्ली आई. क्योंकि राजीव और सोनिया की शादी नहीं हुई थी. इसलिए इंदिर उन्हें अपने घर नहीं रखना चहती थी. उन दिनों राजीव और अमिताभ बच्चन अच्छे दोस्त हुआ करते थे. सोनिया को अमिताभ के घर पर रूकवाया गया.
सोनिय कभी राजनीति में नहीं आना चाहती थी. लेकिन उन्हें मजबूरन राजनीति में आना पड़ा. पहले संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या और उसके कुछ सालों बाद राजीव गांधी की हत्या. इन सब से सोनिया को एक बात समझा दी कि राजनीति ही उनकी दुश्मन है जिसके कारण उन्हें यह सब झेलना पड़ा. लेकिन चाहते न चाहते हुए भी उन्हें राजनीति में आना पड़ा. साल 2004 में बीजेपी सोनिया को ज्याद तव्वजो नहीं दे रही थी.लेकिन सोनिया ने सबको साथ लाकर बीजेपी को अपनी ताकत का एहसास कराया.
साल 2004 के चुनावों में कांग्रेस को कामयाबी मिली. लेकिन सोनिया ने प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया. सत्ता त्यागी और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया. मनमोहन सिंह सियासतदान कर कांग्रेस के वफादार जयाद थे. साल 1999 में सोनिया को सियासत को नौसिखिया कहा गया था. उसी सोनिया ने कांग्रेस को सत्ता दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सोनिया किसी पार्टी से कोई डील नहीं कर रही थी. अपनी ईमानदारी सो वो सबको साथ लेकर चल रही थी. सोनिय पर एक किताब भी लिखी गई थी. साल 2003 में राशिद किदवई ने लिखी थी.