मनमोहन को छोड़िए, यूपी में योगी समेत ये नेता बने ‘एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर’

फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर’  (the accidental prime minister)  का ट्रेलर रिलीज के बाद एक्सीडेंटल नेताओं की चर्चा शुरु हो गई है। कांग्रेस का इतिहास खंगाला जाए तो कई मुख्यमंत्री एक्सीडेंटल ( accidental chief minister) ही है। वहीं बीजेपी में भी मुख्यमंत्रियों को कुर्सी एक्सीडेंटल ही नसीब हुई। उनमें खुद पीएम नरेंद्र मोदी का नाम भी है, जिनको अचानक दिल्ली से गुजरात भेजकर का सीएम बना दिया गया।

ये लिस्ट यहीं नहीं रुकी अमित शाह पार्टी भी पार्टी अध्यक्ष एक्सीडेंटल ही बने थे। बीजेपी ने जैसे ही नरेंद्र मोदी को पीएम बनाया मोदी की मांग पर कुछ दिनों बाद ही तमाम वरिष्ठ और योग्य नेताओं को दरकिनार करते हुए अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया गया। लेकिन आज हम बात करेंगे यूपी में बने एक्सीडेंटल मुख्यमंत्रियों की।

एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ !

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मौजूदा मुख्यमंत्री सीएम योगी आदित्यनाथ भी एक्सीडेंटल मुख्यमंत्रियों की सूची में शुमार है। क्योंकि चुनाव में बंपर जीत के बाद जब पार्टी शीर्ष नेतृत्व सीएम के नाम पर चर्चा कर रहा था। उसमें योगी का नाम सबसे नीचे था। क्योंकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह, पार्टी महामंत्री रामलाल, तात्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य, लखनऊ मेयर दिनेश शर्मा, के साथ रेल मंत्री मनोज सिन्हा के नाम लिस्ट में था। अंत में मोदी और शाह की पसंद के चलते मनोज सिन्हा के नाम पर संघ मुहर लगा चुका था। कहा जाता है मुख्यमंत्री बनने के लिए योगी आदित्यनाथ ने ऐन मौके पर पार्टी को 120 विधायकों का दम दिखाकर कुर्सी हथिया ली।

सीबी गुप्ता, चौ. चरण सिंह

यूपी में एक्सीडेंटल मुख्यमंत्रियों की सूची बेहद लंबी है। बात 1967 की है जब सीबी गुप्त 19 दिन के मुख्यमंत्री रहे। क्योंकि 19 दिन के अंदर ही किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस को तोड़कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली। ये पहली बार था जब प्रदेश में गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बना था। लेकिन वो सरकार ज्यादा दिन नहीं चला पाए। एक साल बाद ही सीबी गुप्ता दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए।

सातवीं विधानसभा (1977-1980) का कार्यकाल ऐसा था, कि जनता दल के रामनरेश यादव और बाबू बनारसी दास मुख्यमंत्री रहे। सरकार गिरी तो चुनाव के बाद कांग्रेस का राज आ गया।

मुलायम सिंह यादव

यूपी की राजनीति में सबसे बड़ा एक्सीडेंट तो 1998 में हुआ। जब जनता दल को कांग्रेस ने समर्थन दिया। और मुलायम सिंह यादव ने लोकदल को तोड़कर सीएम की कुर्सी हथिया ली। लोकदल के नेता अजीत सिंह देखते रह गए। मुलायम सिंह यादव ने किसान नेता चौधरी चरण सिंह की विरासत हथिया ली थी।

मायावती

इसके बाद 1993 में दलित नेता कांशीराम के साथ गठबंधन करके मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन बीजेपी ने कांशीराम को विधायकों के समर्थन के लेटर देकर सरकार गिरा दी। उसवक्त कांशीराम बीमार थे, उन्होंने अपनी सहयोगी मायावती को बीजेपी के साथ मिलकर एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री बना दिया।

जगदंबिका पाल

यूपी की सियासत जगदंबिका पाल का मुख्यमंत्री बनाना बेहद चौंकाने वाला और प्रदेश की राजनीति में काला अध्याय से कम नहीं था। जब 1997 को बीजेपी और बसपा ने गठबंधन की सरकार बनाई। छह महीने के लिए बसपा की और छह महीने बीजेपी की सरकार का सौदा हुआ। छह महीने पूरे करने के बाद जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने तो उनके ज्यादातर फैसले बदल दिए। जिसके बाद बसपा ने समर्थन वापस ले लिया।

विधायकों के बीच मारपीट

21 फरवरी को यूपी विधानसभा में विधायकों के बीच जमकर लात घूंसे और माइक चले। कई विधायकों के सिर फूट गए। 22 फरवरी को विपक्ष की ग़ैरमौजूदगी में कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया. विधानसभा में हुई हिंसा के बाद राज्यपाल रोमेश भंडारी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफ़ारिश कर दी. 22 अक्तूबर को केंद्र ने इस सिफ़ारिश को राष्ट्रपति के आर नारायणन को भेज दिया. लेकिन राष्ट्रपति नारायणन ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफ़ारिश को मानने से इंकार कर दिया और दोबारा विचार के लिए इसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया. आख़िरकार केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सिफ़ारिश को दोबारा राष्ट्रपति के पास न भेजने का फ़ैसला किया.

कल्याण सिंह दोबारा बने मुख्यमंत्री

इस फ़ैसले से खुश कल्याण सिंह ने पाला बदल कर उनके साथ आए दूसरी पार्टियों के हर विधायक को मंत्री बना दिया. देश के इतिहास में पहली बार 93 मंत्रियों के मंत्री परिषद को शपथ दिलाई गई. विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने सभी दलबदलूओं को हरी झंडी दे दी. इस फ़ैसले की बहुत आलोचना हुई. इस बीच कुछ राजनीतिक पार्टियों के बीच कल्याण सिंह का तख़्ता-पलट करने के लिए खिचड़ी पकती रही.

जगदंबिका पाल ने ली शपथ

21 फरवरी 1998 को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को बर्ख़ास्त कर जगदंबिका पाल को रात में साढ़े दस बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. इस फ़ैसले के विरोध में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ में आमरण अनशन शुरू कर दिया.  रातों-रात कुछ लोग उच्च न्यायालय के पास भी पहुँच गए. उच्च न्यायालय ने अगले दिन यानी 22 फ़रवरी को राज्यपाल के आदेश पर रोक लगा दी और कल्याण सिंह सरकार को बहाल कर दिया.

अगले दिन जगदंबिका पाल सवेरे-सवेरे ही सचिवालय पहुँच कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ हो गए. लेकिन जब उन्हें उच्च न्यायालय का आदेश लिखित में मिला तो वे कल्याण सिंह के लिए कुर्सी छोड़कर चले गए.

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