नई दिल्ली: आयोध्या जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को 6 हफ्ते के लिए टालने का फैसला लिया है. कोर्ट ने अभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद देखने के लिए 6 हफ्ते दिए हैं. कोर्ट अगले मंगलवार को मध्यस्थता पर आदेश देगा. बता दें कि मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच कर रही है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट 5 मार्च को तय करेगा कि अयोध्या मामले समझौते के लिए मध्यस्थ के पास भेजा जाए या नहीं. इससे पूर्व पक्षकारों को कोर्ट को बताना होगा कि वे मामले में समझौता चाहते हैं या नहीं? वहीं जस्टिस बोबड़े ने अपनी टिप्पणी में कहा ‘यह कोई निजी संपत्ति को लेकर विवाद नहीं है, मामला पूजा-अर्चना के अधिकार से जुड़ा है. अगर समझौते के जरिए 1 फीसदी भी इस मामले के सुलझने की गुंजाइश हो, तो इसकी कोशिश होनी चाहिए.’
आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए इस मामले पर देश भर की निगाह टिकी हुई है. पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस ने संकेत दिए थे कि आज सुनवाई के दौरान इस मामले की रूप-रेखा तय की जाएगी. लेकिन अब सुनवाई को ट्रांसलेशन पर सहमति बनाने के लिए अगले 6 हफ्ते के लिए टाल दिया गया है. आपको बता दें कि पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस ने कहा था कि मामले से संबंधित जो भी रेकॉर्ड हैं उसमें 50 ट्रंक दस्तावेज है. रजिस्ट्री उसे एग्जामिन करे.
जानिए क्या है अयोध्या जमीन विवाद
आयोध्या में जमीन विवाद बरसों से चलता आ रहा है. यह विवाद हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बड़ा मुद्दा रहा है. दरअसल, आयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर होने की मानयता है. हिंदुओं का दावा है कि राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई. साथ ही दावा यह भर है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी. 90 के दशक में यह मामला उठा जिससे देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था.
आयोध्या विवादित जमीन को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन हिस्सों में 2.77 एकड़ जमीन बांटी थी. इसमें राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और जमीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया. हालांकि इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई थी.