नई दिल्ली: आयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्ज़िद मामले को मध्यस्थ के पास भेजा जा सकता है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया. पौने घंटे बहस सुनने के बाद सीजेआई ने पक्षकारों से कहा कि कोर्ट जल्द ही इस मामले पर फैसला देगा. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मध्यस्थता की तरफ मामला बढ़ता है तो पक्षकार अपनी तरफ़ से मध्यस्थ पैनल के नाम आज ही दे दें.
सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े ने कहा, ‘यह मामला भावनाओं से जुड़ा है, आस्था और धर्म से जुड़ा है. हमें विवाद की गहराई का भी अंदाजा है.’ उन्होंने कहा कि इस मामले को सुलझाने के लिए एक नहीं बल्कि कई लोगों का पैनल होना चाहिए. उन्होंने कहा कि ‘इतिहास में क्या हुआ उस पर हमारा नियंत्रण नहीं. किसने घुसपैठ की, कौन राजा था, मंदिर था या मस्जिद थी. लेकिन हम आज के विवाद के बारे में जानते हैं. हम सिर्फ विवाद सुलझाना चाहते हैं.
बोबड़े ने कहा, “मध्यस्थता के मामले में गोपनीयता बेहद अहम है, लेकिन अगर किसी भी पक्ष ने बातों को लीक किया तो हम मीडिया को रिपोर्टिंग करने से कैसे रोकेंगे? अगर जमीन विवाद पर कोर्ट फैसला दे तो क्या सभी पक्षों को मान्य होगा?”
इसके जवाब में मुस्लिम पक्षकार के वकील दुष्यंत ने कहा कि इसके लिए विशेष आदेश दिया जा सकता है.
हिंदूपक्षकारों ने कोर्ट को कहा कि वो इस मामले की मध्यस्थता नहीं चाहते हैं. इस बारे में कोर्ट ही फैसला करे. जबकि, मुस्लिम याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने कहा, “मुस्लिम याचिकाकर्ता मध्यस्थता और समझौते के लिए तैयार हैं.”
बता दें, कोर्ट ने अपने प्रस्ताव पर पक्षकारों की राय पूछी थी, जिसमें मुस्लिम पक्ष व निर्मोही अखाड़ा की ओर से सहमति जताई गई थी. रामलला, महंत सुरेश दास और अखिल भारत हिंदू महासभा ने प्रस्ताव से असहमति जताते हुए कोर्ट से ही जल्द फैसला सुनाने का आग्रह किया था. उनका तर्क था कि इस प्रकार के प्रयास पूर्व में भी हो चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
गौरतलब है कि इलाहाबाद HC के 2010 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपील दायर की गई हैं. हाई कोर्ट ने अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था.