लखनऊ: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शनिवार से आरंभ होने वाले वासंतिक नवरात्र का समापन रामनवमी के दिन होगा। नौ दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाएगी। इसी तिथि से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2076 भी शुरू होगा।
ब्रम्ह पुराण के मुताबिक, ब्रम्हा ने इसी संवत में सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की थी। विक्रम संवत में प्रकृति की खूबसूरती दिखती है। प्रकृति कई तरह का सृजन करती है। इस बार चैत्र नवरात्रि पर कई शुभ योग -पांच सर्वार्थ सिद्धि, दो रवि योग का संयोग बन रहा है। ऐसे शुभ संयोग में नवरात्रि पर देवी उपासना करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। पं. राकेश झा शास्त्री ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को वासंतिक नवरात्र रेवती नक्षत्र एवं वैधृति योग में आरंभ हो रही है।
इस नवरात्र में माता अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए घोड़े पर आ रही हैं। माता के इस आगमन से श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगी, राजनीति के क्षेत्र में उथल-पुथल होंगे। इसके साथ ही माता की विदाई भैंसे पर होगी। भक्त इस पूरे नवरात्र माता की कृपा पाने के लिए दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, बीज मंत्र का जाप, भगवती पुराण आदि का पाठ करेंगे। पंडित झा के मुताबिक नवरात्रि की पूजा इस बार दशमी तिथि की क्षय होने से नौ दिनों की होगी।
महाष्टमी और महानवमी की पूजा एक ही दिन शनिवार 13 अप्रैल को की जाएगी।कलश पूजा से मिलेगी सुख-समृद्धि का वरदान : पंडित झा ने बताया कि चैत्र नवरात्र में कलश स्थापन का महत्व अति शुभ फलदायक है, क्योंकि कलश में ही ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौंसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है।