लोकसभा चुनाव: क्या आपने कभी सोचा है यह चुनावी स्याही कहां बनती है?

लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग शुरू हो गई है। चुनाव से जुड़े कुछ ऐसे दिलचस्प तथ्य हैं जिनके बारे में जानना आपके लिए भी जरूरी है। ऐसा ही एक तथ्य जुड़ा हुआ है चुनाव के दौरान इस्तेमाल होने वाली अमिट स्याही से। अगर आपने वोट दिया है तो इस बात को बखूबी जानते होंगे कि वोट देने के बाद उंगली पर एक खास तरह की स्याही लगाई जाती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये स्याही कहां से आती है और इसकी क्या कीमत है।

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव से पहले 33 करोड़ रुपये की कीमत पर पक्की स्याही की 26 लाख बोतलों का ऑर्डर दिया था। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने 21.5 लाख शीशियां मंगाई थी जो इस साल के मुकाबले 4.5 लाख कम थी। दिलचस्प तथ्य है कि इस अमिट स्याही का इस्तेमाल पहली बार 1962 के तीसरे आम चुनाव में हुआ था ताकि फर्जी मतदान रोका जा सके। यह स्याही मैसूर में बनाई जाती है जो लगाने के बाद 60 सेकेंड में ही सूख जाती है। इस बार चुनाव आयोग की ओर से मंगाई गई पक्की स्याही के निशान को मिटाना भी काफी मुश्किल है। वोट देने के बाद मतदाता स्याही के निशान को आसानी से हटा नहीं पाएगा।

कर्नाटक सरकार का उपक्रम मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड चुनाव आयोग के लिए पक्की स्याही बनाने का काम करता है। यह एक सरकारी अधिकृत निर्माता है, जो इस स्याही का निर्माण करता है। चुनाव आयोग ने 1962 में कानून मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के साथ मिलकर मैसूर पेंट्स के साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पक्की स्याही की आपूर्ति के लिए अनुबंध किया था।

मैसूर पेंट्स के प्रबंध निदेशक चंद्रशेखर डोडामनी ने बताया कि कंपनी को चुनाव आयोग से 10-10 क्यूबिक सेंटीमीटर की 26 लाख शीशियां बनाने का आर्डर प्राप्त हुआ है। इस बार लोकसभा की 543 सीटों के लिए सात चरणों में चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को वोटिंग शुरू हो गई है। वहीं आखिरी चरण की वोटिंग 19 मई को होगी और नतीजे 23 मई को आएंगे।

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