नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सड़क पर हुए हादसे में मौत पर सड़क दुर्घटना बीमा का लाभ तभी मिलेगा, जब एक्सीडेंट में लगे जख्मों के कारण पीड़ित की मौत 180 दिन में हुई हो। न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा बीमे की धनराशि उसी सूरत में मिल सकती है, जब नॉमिनी यह साबित करने में सफल हो जाए कि मौत का कारण सिर्फ दुर्घटना ही थी। सुप्रीम कोर्ट ने दुर्ग के जिला उपभोक्ता मंच और छत्तीसगढ़ की राज्य उपभोक्ता आयोग की ओर से महिला को क्लेम की राशि देने के आदेश को गलत बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने महिला की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के फैसले पर मुहर लगा दी है।
उल्लेखनीय है कि महिला के पति ने एलआईसी से तीन पॉलिसी खरीदी थीं। बीमा गोल्ड पॉलिसी, एलआईसी न्यू बीमा गोल्ड पॉलिसी और बीस वर्षीय मनी बैक पॉलिसी में दुर्घटना लाभ का भी प्रावधान था। तीनों बीमा पॉलिसी में दुर्घटना लाभ की शर्तों का साफतौर पर उल्लेख किया गया था। इसमें कहा गया था कि यदि बीमाधारक किसी बाहरी कारण से शारीरिक रूप से जख्मी होता है और घायल होने के 180 दिन के अंदर उसकी मौत हो जाती है, तो ही उसे हादसे का बेनेफिट मिलेगा।
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भिलाई में 3 मार्च 2012 को महिला के पति की बाइक चलाते समय दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। उन्हें मोटरसाइकिल चलाते समय अचानक दिल में दर्द उठा था। उनकी विधवा ने मई 2013 में दुर्घटना लाभ के लिए जिला उपभोक्ता मंच में दावा दायर किया। उपभोक्ता मंच ने तीनों बीमा पॉलिसियों पर छह प्रतिशत ब्याज सहित दुर्घटना लाभ देने का आदेश एलआईसी को दिया। राज्य आयोग ने इसे सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुर्घटना बीमा का दावा स्वीकार करते समय सबसे पहले यह देखना होगा कि बीमाधारक को शारीरिक चोट पहुंची या नहीं।
शारीरिक चोट और मौत में सीधा संबंध होने पर ही क्लेम स्वीकार किया जा सकता है। दूसरे, दुर्घटना किसी बाहरी कारण से हुई हो। सुप्रीम कोर्ट ने उदाहरण देकर कहा कि नृत्य करते समय डांसर का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन दुर्घटना की श्रेणी में नहीं आता। इसलिए एक्सिडेंट क्लेम तय करते समय मौत का कारण जानना परम आवश्यक है।