नई दिल्ली: छठे चरण में 59 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में भाजपा की 46 सीटें दाव पर लगी है। इस बार उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और दिल्ली में समीकरण बदलने के कारण भाजपा को पिछली बार जीती सभी सीटें बरकरार रखना आसान नहीं है।17वीं लोकसभा के लिए अब तक 424 सीटों के लिए चुनाव हो चुका है। अब अगले दो चरणों में 118 सीटों के लिए चुनाव होना है। रविवार को सात राज्यों की 59 सीटों के लिए चुनाव होना है। इन सीटों पर भी भाजपा की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है।
इस चरण में उत्तर प्रदेश की 14, हरियाणा की सभी 10, बिहार, मध्य प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल की आठ-आठ, दिल्ली की सभी सात और झारखंड की चार सीटों के लिए मतदान होना है। हरियाणा की 10 में से आठ सीटें भाजपा की झोली में हैं। उत्तर प्रदेश की 14 में से 13 सीटें भाजपा के पास है, बिहार की आठ (एनडीए), मध्यप्रदेश की छह, दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन है।
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रविवार को जिन 14 सीटों पर चुनाव होना उनमें से अधिकर पर 2014 के चुनाव में सपा और बसपा का वोट मिला दिया जाए तो भाजपा के जीते हुए प्रत्याशियों से ज्यादा है। यदि दोनों दलों के वोट एकजुट होते हैं तो भाजपा के लिए परेशानी खड़ी होगी। इसी तरह से बिहार की आठ सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर है। बिहार में लालू प्रसाद यादव को जेल और नीतीश कुमार का राजद छोड़ना भी मुद्दा है। मध्यप्रदेश में गुना सीट को छोड़कर सभी भाजपा के पास हैं।
2014 और 2019 के बीच फर्क यह है कि इस बार वहां राज्य में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस के ज्यादा विधायक हैं, सभी विधायक अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए जोर अजमाइश कर रहे हैं। हरियाणा में पूरी लड़ाई जाट बनाम गैर जाट हो गई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के स्वयं चुनाव लड़ने के कारण चुनाव रोचक हो गया है। दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। इसलिए ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।