उत्तर प्रदेश सरकार ने मंत्रियों के आयकर का भुगतान राज्य सरकार के कोष से करने की मंजूरी देने वाला एक कानून रद्द करने का फैसला किया है। यह कानून चार दशक पुराना था। मुख्यमंत्री समेत पूरे मंत्रिमंडल को मंत्री के तौर पर दिए जाने वाले वेतन-भत्ते पर आयकर की अदायगी राज्य सरकार 38 वर्षों से साल-दर-साल अपने खजाने से वहन करती आ रही है। ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’ जैसे नारे के नायक रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते 1981 में इस व्यवस्था को पारित किया था। इस कानून के पारित होते समय तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने विधानसभा में तर्क दिया था कि राज्य सरकार को मंत्रियों के आयकर का बोझ उठाना चाहिए क्योंकि अधिकांश मंत्री गरीब पृष्ठभूमि से हैं। इस कानून के चलते अब तक 19 मुख्यमंत्रियों और लगभग 1000 मंत्रियों को लाभ हुआ है।
हालांकि मीडिया में यह तथ्य उजागर होने पर योगी सरकार ने लगभग चार दशकों से जारी इस व्यवस्था को खत्म करने का फैसला किया है। वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने बताया कि मुख्यमंत्री ने निर्णय किया है कि सरकार द्वारा आयकर अदा करने संबंधी व्यवस्था को खत्म किया जाएगा। ऐसे में अब मुख्यमंत्री और मंत्रियों को अपने वेतन-भत्ते पर लागू आयकर खुद अदा करना होगा।
प्रदेश में यह व्यवस्था ‘उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, एलाउएंसेज एंड मिसलेनियस एक्ट, 1981’ के तहत लागू हुई है। तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस कानून को बनाए जाने के दौरान इसकी वकालत करते हुए कहा था कि सरकार के ज्यादातर मंत्री कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के हैं और उनकी आमदनी बहुत कम है। लिहाजा उन्हें मंत्री के तौर पर मिलने वाले वेतन-भत्ते पर पडऩे वाले आयकर के बोझ को राज्य सरकार वहन करे। संबंधित एक्ट में यह प्रावधान है कि मंत्रियों को मिलने वाला वेतन आयकर से मुक्त रहेगा। वेतन पर आयकर की अदायगी राज्य सरकार करेगी।
विश्वनाथ प्रताप सिंह के मुख्यमंत्री रहने से अब तक जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरफ से सरकार को इनकम टैक्स जमा करना था उनमें इनमें कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी, श्रीपति मिश्र और वीर बहादुर सिंह, समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव, बहुजन समाज पार्टी की मायावती और भाजपा के कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ की सरकारें और उनमें शिरकत करने वाले विभिन्न दलों के तकरीबन 1000 मंत्री शामिल हैं। वित्तीय वर्ष 2018-19 में योगी सरकार के दौरान 2 साल में जितने भी मंत्री रहे उनका 86 लाख का इनकम टैक्स सरकार ने ही अदा किया है। अब बाकी पुरानी रकम जो कि मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के नाम से जमा होनी है, उसे भी सरकार को ही अदा करना था, लेकिन अब नया फैसला आने के बाद सरकार की ओर से यह रिटर्न दाखिल नहीं किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री-मंत्रियों का मासिक वेतन 1.64 लाख रुपये
मुख्यमंत्री और मंत्रियों को प्रतिमाह एक लाख 64 हजार रुपये मिलते हैं। यह धनराशि मूल वेतन और भत्तों को मिलाकर है। इसमें 40 हजार रुपये मूल वेतन, 50 हजार रुपये निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, 30 हजार रुपये चिकित्सा प्रतिकर भत्ता, 20 हजार रुपये सचिवालय भत्ता और 800 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 24 हजार रुपये दैनिक भत्ता दिये जाते हैं। मुख्यमंत्री और मंत्रियों का मूल वेतन पहले 12 हजार रुपये प्रतिमाह था जिसे अखिलेश यादव की सरकार में बढ़ाकर 40 हजार रुपये किया गया। इसके पहले वर्ष 1981 में मुख्यमंत्री का वेतन बढ़ाया गया था।
योगी सरकार में वेतन न लेने वाले मंत्री भी
योगी सरकार में एक ऐसे भी मंत्री हैं जो वेतन नहीं लेते। स्टांप व पंजीयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल ने पिछले दिनों हुए मंत्रिमंडल विस्तार में शपथ ली थी। मंत्री पद की शपथ के बाद ही उन्होंने घोषणा कर दी कि वह अपना मूल वेतन नहीं लेंगे।
मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों के मौजूदा वेतन-भत्ते
मूल वेतन 40,000 रुपये प्रतिमाह
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 50,000 रुपये प्रतिमाह
चिकित्सीय भत्ता 30,000 रुपये प्रतिमाह
सचिवालय भत्ता 20,000 रुपये प्रतिमाह
दैनिक भत्ता 800 रुपये प्रतिदिन