नई दिल्ली: सामाजिक कार्यकर्ताओं के माओवादियों से मिले होने के आरोपों को लेकर मंगलवार को हुई गिरफ्तारी के बाद से कांग्रेस बार-बार भाजपा पर हमले बोल रही है. राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है कि देश में केवल एक ही एनजीओ को काम करने की इजाजत है और वो है आरएसएस. मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लिखा कि कार्यकर्ताओं को जेल में डालो और जो शिकायत करते हैं उन्हें गोली मार दो, यही नया भारत है.
लेकिन एक अधिकारी के मुताबिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ ये कार्रवाई नई नही है. यूपीए सरकार में भी उन संगठनों को निशाने पर रखा गया था जिन पर कथित रूप से माओवादियों से मिले होने के आरोप थे. जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक ये पांचों कार्यकर्ता जिनकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाए जा रहे हैं वो युपीए 2 के दौरान भी रडार पर थे. अधिकारी द्वारा ये भी जानकारी दी गई है कि कांग्रेस सरकार ने 128 संगठनों की भी पहचान की हुई थी जिन पर माओवादियों से मिले होने की आशंका थी. तत्कालीन यूपीए सरकार ने तो राज्य सरकार को चिट्ठी लिख उनके खिलाफ कार्रवाई करने को भी कहा था.
वरिष्ठ पत्रकार और माओवादी इलाकों में पत्रकारिता करने वाले राहुल पंडिता ने भी ट्वीट कर कहा कि कार्यकर्ताओं के खिलाफ हो रही कार्रवाई को लेकर भाजपा और यूपीए सरकार में कोई फर्क नही है. इस मामले को लेकर उन्होने बिनायक सेन का भी जिक्र किया.
As a reporter who has extensively reported on Maoists, find no difference in how UPA and current regime has dealt with activists working around the movement. Remember Binayak Sen? Arun Ferreira, Vernon G. arrested in 2007. So by all means call it Emergency, but not 2.0 but 3.0.
— Rahul Pandita (@rahulpandita) August 29, 2018
बता दें कि मानवाधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन जिन्हें गांधी इंटरनेशनल पीस अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है, उन्हें 2010 में नक्सलियों से मिले होने के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी. उनकी सजा के खिलाफ दुनिया भर के 22 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने भी डॉ बिनायक सेन की रिहाई की अपील की थी। नोबेल पुरस्कार विजेता चाहते थे कि उन्हें जोनाथन मैन सम्मान लेने के लिए अमरीका जाने की अनुमति दी जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
वहीं जिन दो कार्यकर्ताओं अरुण फरेरा और वर्नेन गोंजाल्वेस को मंगलवार को गिरफ्तार किया गया है उनकी गिरफ्तारी यूपीए सरकार के दौरान 2007 में भी हो चुकी है. पत्रकार राहुल ने कहा कि यदि इसे आपातकाल कहना है इसे दूसरा नही बल्कि तीसरा आपातकाल कहा जाना चाहिए.
बता दें कि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने पांचो सामाजिक कार्यकर्ताओं की हिरासत पर रोक लगा दी है. इस मामले की अंतरिम सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिसेंट लोकतंत्र में सेफ्टी वॉल्व का काम करती है और यदि ये नही होगा तो प्रेशर कूकर फट जाएगा. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इन कार्यकर्ताओं को 6 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई तक के लिए नजरबंद रखने को कहा है.