नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को चौथे बिम्सटेक सम्मलेन में हिस्सा लेने के लिए काठमांडू पहुंचे, जहां वह सदस्य देशों के प्रमुखों से मुलाकात करेंगे. वह बिम्सटेक उद्घाटन सत्र में भाग लेंगे और भाषण देंगे.
उद्घाटन सत्र के बाद, मोदी अपने नेपाली और बांग्लादेशी समकक्ष के.पी. शर्मा ओली और शेख हसीना के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे.
लेकिन ये वह बिम्सटेक सम्मेलन है क्या और भारत के इससे क्या हित जुड़े हैं.
दरअसल बिम्सटेक बंगाल की खाड़ी से जुड़े हुए देशों का एक समूह है. बिम्सटेक संगठन में बंगाल की खाड़ी से जुड़े देश एकदूसरे को आर्थिक और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग देते हैं. हालांकि इस समूह की शुरूआत 1997 में हूई थी लेकिन इसका पहला सम्मेलन 2004 में थाईलैंड में हुआ था. बिम्सटेक को एशिआन, सार्क की तरह ही एक औऱ क्षेत्रीय संगठन कहा जा सकता है. शुरूआत में इसके सदस्यों में बांग्लादेश, इंडिया, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हुए, इसके बाद 1997 में म्यांमार और 2004 में नेपाल औऱ भूटान भी इस समूह के सदस्य बने.
अब तक इस समूह के 3 सम्मेलन हुए हैं और चौथा नेपाल में हो रहा है. 2008 में भारत में भी बिम्सटेक सम्मलेन हुआ था.
हालांकि नेपाल किसी भी तरह बंगाल की की खाड़ी से जुड़ा देश नही है फिर भी इसे बिम्सटेक देशों में शामिल किया गया है. अकसर इस बात की चर्चा के दौरान इसकी वजह ये बताई जाती है कि भारत ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए नेपाल को इस समूह का सदस्य बनवाया है.
2014 में इस समूह का मुख्य कार्यालय ढ़ाका में बनवाया गया था जिसके बनने का 36 फीसदी खर्चा भारत द्वारा उठाया गया था.
हालांकि अभी इस समूह को मजबूत करने की जरूरत है और इसी कड़ी में एक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का प्रस्ताव भी तैयार किया जा रहा है .बिम्सटेक देशों में बंगाल की खाड़ी के जरिए व्यापार को मजबूत करने की कोशिशें भी की जा रही हैं जिसके लिए कोस्टल शिपिंग एग्रीमेंट भी तैयार होने को है.
चाइना जिस तरह एशिया में अपना दबदबा बनाने की कोशिश कर रहा है ऐसे में बिम्सटेक देश भारत के साथ मिलकर इस संगठन को कामयाब बनाने की कोशिश में हैं. न सिर्फ अन्य देशों के लिए बल्कि भारत के लिए भी ये संगठन पड़ोसी देशों को करीब ला कर संबंधों को मजबूत कर सकता है.
वहीं म्यांमार और नेपाल जिसकी भारत से दूरियां बन रही हैं और ये चाइना के करीब जा रहे हैं ऐसे में बिम्सटेक एक अच्छा मौका है जिसके तहत भारत फिर से इन देशों को अपने भरोसे में ला सकता है.
भारत इस संगठन को बिना पाकिस्तान वाले सार्क संगठन की तरह बनाने की कोशिश कर रहा है लेकिन इसके लिए बजट सबसे बड़ी मांग है. 2016 का भारत का बिम्सटेक बजट मात्र 12 लाख था जिससे बिम्सटेक में भारत की दिलचस्पी पर सवाल भी उठाए जाने लगे थे. हालांकि बाद में इसे बढ़ा कर 4.5 करोड़ कर दिया गया था.
बिम्सटेक से उम्मीद की जाती है कि वो एशिआन या युरोपीयन युनियन के जैसा एक संगठन बन सकता है लेकिन अभी ये प्रथम स्तर पर है और यदि अभी इस पर ध्यान नही दिया गया तो शायद ही ये अपनी उम्मीदों पर खरा उतर पाएगा.