सिर्फ सीटों का बंटवारा नहीं, नीतीश से भी बड़ी दिक्कत है उपेंद्र कुशवाह को!

नई दिल्ली: हालांकि आरएलएसपी नेता और केंद्रीय मंत्री ने कह दिया है कि दूध, चावल -खीर को लेकर उनके बयान में सियासत ना ढूंढी जाए, मगर सियासी गलियारों में कुशवाहा के इरादे और इशारे सौ फीसदी सियासी ही माने जा रहे हैं। फिलहाल तक हालात यही हैं कि अगर सीटों के बंटवारे में उनकी उपेक्षा हुई तो वो एनडीए से अलग राह पकड़ सकते हैं। कहा यह भी जाता है कि कुशवाहा दूर की कौड़ी पर निशाना लगा रहे हैं, उनकी निगाह बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी है।

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कुशवाहा की आरएलएसपी एनडीए का हिस्सा बनी थी। उसे तीन सीटों पर जीत मिली। अपनी पार्टी के कोटे से कुशवाहा मोदी कैबिनेट में शिक्षा राज्य मंत्री हैं। उनकी गतिविधियां और मेल-मुलाकातें तो इधर काफी समय से भारतीय जनता पार्टी को असहज कर रही थीं। जिनके इशारे यही थे कि उपेंद्र कुशवाहा लालू यादव के करीब जा रहे हैं। और, उनकी अगुवाई वाले महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं। पिछले दिनों तो एक र्कायक्रम में उनके बयान ने मानो इन कयासों पर मुहर लगा दी। इसमें कुशवाहा बोले – यहां बहुत बड़ी संख्या में यदुवंशी समाज के लोग जुटे हैं। यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाए तो खीर बढ़िया बन सकती है। लेकिन खीर बनाने के लिए केवल दूध और चावल ही नहीं, बल्कि छोटी जाति और दबे-कुचले समाज के लोगों का पंचमेवा भी चाहिए।’

कुशवाहा के बयान के राजनीतिक निहितार्थ बिलकुल सीधे थे। यदुवंशी यानी लालू यादव और उनकी आरजेडी, कुशवंश वो खुद और उनकी बिरादरी के अलावा अन्य छोटी जातियां मिलकर मजबूत सियासी विकल्प साबित हो सकती हैं। मुसलामानों का समर्थन आरजेडी को पहले से है। इसी सब को लेकर कुशवाहा के बायण को हाथो हाथ लिया गया। आरजेडी नेता और लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने तो तुरंत ट्वीट करके कुशवाहा इ बयान का समर्थन कर दिया। और कह दिया कि कुशवाहा जी के फॉर्मूले से बेहद स्वादिष्ट खीर बन सकती है। हालाँकि कुशवाहा ने चौतरफा प्रतिक्रिया देख तुरंत अपने बयान को राजनीति से अलग बता दिया, लेकिन समझने वाले समझ रहे हैं और उन्हें नहीं वही दिख रहा है जो कुशवाहा के मन में है।

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के ग्राफ को लेकर आए दिन आ रहे सर्वे और 2019 के परिणाम को लेकर हो रहीं भविष्यवाणियों के बीच माहौल तो बदला है। इस बदले माहौल में एनडीए के क्षेत्रीय घटक दल मुखर हुए हैं इसमें भी दो राय नहीं है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर तो रामविलास पासवान और उनकी एलजेपी पूरा क्रेडिट लेती घूम रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा भी अब दबाव बनाने का सबसे बड़ा ज़रिया है।

बिहार की 40 सीटों पर पिछले चुनाव में नितीश कुमार एनडीए का हिस्सा नहीं थे। वह लालू यादव के साथ महागठबंधन बनाकर लड़े थे। अब नितीश अपनी पार्टी जेडीयू लेकर वापस एनडीए में हैं। अब भाजपा के बाद सीट शेयरिंग में उनकी हिस्सेदारी सबसे बड़ी रहना तय है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भाजपा को 20, नीतीश कुमार की जेडीयू को 12, रामविलास पासवान की एलजेपी को 5 और उपेंद्र कुशवाह की आरएलएसपी भाजपा को 20, नीतीश कुमार की जेडीयू को 12, रामविलास पासवान की एलजेपी को 5 और उपेंद्र कुशवाह की आरएलएसपी और आरएसपीस को 2-2 सीटें देने का फॉर्मूला तय हुआ है। कुशवाहा वैसे भी नितीश के विरोधी माने जाते हैं। उनकी बिरादरी और नितीश की बिरादरी कुर्मी के बीच जमीन पर रिश्तों का यही हाल है। सिर्फ दो सीटें मिलने की गुंजाइश से उनकी पार्टी में बगावत जैसा माहौल है। कुशवाहा पर किसी भी कीमत पर यह फॉर्मूला स्वीकार ना करने का दबाव है।

दूसरी तरफ, जो खबरें हैं उनके मुताबिक़ कुशवाहा की मुराद महागठबंधन में पूरी हो रही है। वैसे तो उनकी तरफ से बंटवारे में 8 सीटें मांगी थीं मगर लालू प्रसाद यादव ६ सीट आरएलएसपी को देने के लिए तैयार हैं और यह कुशवाहा और उनके सहयोगियों को भी स्वीकार है। अब बात बहुत सीधी रह गयी है अगर भाजपा ने सम्मानजनक सीटें नहीं दिन तो एनडीए से तलाक पक्का है।

इसी साल जुलाई में जब नीतिश कुमार बिहार के मुजफ्फरपुर मामले को लेकर विरोधियों के हमले झेल रहे थे. उस वक्त एक हमला उनके करीब से हुआ औऱ वो हमला उपेंद्र कुशवाह का था. कुशवाहा ने नीतिश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा था कि वो काफी समय से मुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं ऐसे में अब उन्हें वो पद दूसरों के लिए खाली कर देना चाहिए. उन्होने ये भी कहा था कि अब एनडीए को बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए कई नए चेहरे मिल चुके हैं. कुशवाह के इस बयान पर बिहार में खूब वार-पलटवार हुए थे. जेडीयू ने अपना नीतीश का समर्थन करते हुए कहा था कि वो जनता के मुख्यमंत्री हैं और जनता जब तक चाहेगी वो मुख्यमंत्री बने रहेंगे. न सिर्फ जेडीयू बल्कि भाजपा ने भी उपेंद्र कुशवाह के इस बयान को लेकर नीतीश कुमार का ही समर्थन किया था.

वहीं इससे पहले भी एनडीए और उपेंद्र कुशवाह के बीच चल रही तकरार नजर आई थी, जब न तो मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और न ही सुशील मोदी उनकी इफ्तार पार्टी में पहुंचे थे. कुशवाह के करीबी बताते हैं कि नितीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मजबूत करने में उनके नेता की कोई रूचि नहीं है। जिस जातिगत आधार पर नितीश राज कर रहे हैं, कुशवाहा का बेस भी उससे कम नहीं है.

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