मदरसों के सर्वेक्षण का उठता उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला पहली नजर में एक बड़े विवाद को उत्पन्न करता दिखाई दे रहा था। असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता इसे ‘दूसरा NRC’ बता कर जनता को भड़काने का काम कर रहे थे, परंतु दारूल-उलूम-देवबंद ने रविवार यानी बीते कल मदरसों के सर्वेक्षण को सही बताते हुए इस घमासान को करीब-करीब खत्म कर दिया है। क्या अब मदरसों के सर्वेक्षण का रास्ता साफ हो गया है और क्या इससे अब गरीब अल्पसंख्यकों के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलने का रास्ता साफ हो गया है? इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद’ के चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने बोला कि दारुल-उलूम-देवबंद का फैसला स्वागत योग्य है।
कोई भी शख्स जो गरीब मुसलमानों के बच्चों को आधुनिक अच्छी शिक्षा को चाहता होगा, वह मदरसों के सर्वेक्षण को गलत नहीं बता सकता। हमें समझना चाहिए कि मदरसों के सर्वेक्षण का विरोध अब तक कौन और क्यों कर रहा था? जो असदुद्दीन ओवैसी मदरसों के सर्वेक्षण को दूसरा NRC बता दे रहे थे , उन्हीं के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी का पुत्र अमेरिका में MBBS कर रहा है और पुत्री लंदन में लॉ की पढ़ाई कर रही है।
वे अपने बच्चों को बड़े अंग्रेजी मिशनरी विद्यालयों में पढ़ाकर उनके लिए सफलता का रास्ता खोलना चाहते हैं, जबकि निर्धन मुसलमानों के बच्चों को धार्मिक शिक्षा तक ही समेटना चाहते हैं। क्यों? इसके पीछे मात्र सियासत जिम्मेदार है, परंतु मैं कहना चाहता हूं कि मुसलमानों के गरीब बच्चे भी अब अत्याधुनिक शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। उनके विकास का मार्ग खुल गया है।