आज 15 अगस्त को देशभर में बड़ी धूमधान से स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। आजादी के 77वें वर्षगांठ पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को बधाई दी है। दिल्ली के लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह कार्यक्रम आयोजित किया गया। पश्चिम बंगाल में भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया गया। कम लोगों को ही पता है कि पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में 15 अगस्त आजादी का पर्व नहीं मनाया जाता है। तीन दिन बाद यानी 18 अगस्त को इन जगहों पर स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता हैै
दरअसल 15 अगस्त 1947 को पश्चिम बंगाल के नदिया और मालदा जिले आधिकारिक रूप से स्वतंत्र भारत का हिस्सा नहीं थे। इन्हें 18 अगस्त 1947 को पूर्णरूप से भारत में शामिल किया गया। मालदा नदिया और कूचबिहार के कुछ इलाकों में स्वतंत्रता दिवस तीन दिन की देरी से मनाया जाता है।
12 अगस्त, 1947 को वायसरॉय लुईस माउंटबेटन ने घोषण कर दी थी कि भारत को 15 अगस्त आजादी दे दी जाएगी। उस समय बंगाल तब तक एक विवादास्पद विषय रहा। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेज अफसर सिरिल रेडक्लिफ की एक चूक के कारण पहली बार में गलत नक्शा बना दिया था। उन्होंने भारत के विभाजन के लिए मानचित्रों का सीमांकन करते हुए हिंदू बहुल जिले मालदा और नदिया पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में दिखाया था।
एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीणों का कहना है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी और नदिया शाही परिवार के सदस्यों ने कोलकाता में ब्रिटिश प्रशासन तक अपने विरोध की आवाज पहुंचाई थी। कुछ इसके दिनों बाद माउंटबेटन ने आनन-फानन में बंगाल के विभाजन का फिर से आदेश दिया गया। हिंदू बहुल जिले को भारतीय क्षेत्र में लाया गया। वहीं मुस्लिम बहुल जिलों को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल किया गया। यह प्रक्रिया 17 अगस्त की रात को पूरी हुई। इस प्रकार से भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे कई गांवों में 15 के बजाय 18 अगस्त को आजादी का जश्न मनाया जाता है। पहले नदिया के शिबानीबाश के अलावा शांतिपुर, कल्याणी, बोनगांव, रानाघाट, कृष्णानगर, शिकारपुर और करीमपुर जैसे कस्बे भी पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा थे।