बीजेपी के इस दांव से डर गए अखिलेश, लिया बड़ा फैसला

लखनऊ: 2019 के करीब आते ही यूपी में जाति का गुणा-भाग तेज हो गया है. राज्य में पिछड़ी जातियों की आबादी सबसे ज्यादा है इसीलिए इस वर्ग को अपने पाले में करने के लिए सियासी जंग छिड़ी हुई है. हर पार्टी इसी बिरादरी के वोट पर नज़र गड़ाए है. पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पिछड़ी जातियों के वोटरों ने खुलकर बीजेपी का साथ दिया था और पार्टी दिल्ली से लेकर लखनऊ तक में सत्ता में आ गई. बीजेपी अपने इस मजबूत वोट बैंक को खोना नहीं चाहती इसलिए शुरुआत उसी की तरफ से हुई.

बीजेपी ने किए 21 जातीय सम्मेलन

उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने ओबीसी वर्ग की अलग-अलग जातियों के एक के बाद एक 21 सम्मेलन कर लिए हैं. सम्मेलनों की जिम्मेदारी पिछड़े वर्ग से ही आने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को दी गई. राजधानी लखनऊ में करीब डेढ़ महीने के भीतर आयोजित हुए इन सम्मेलनों में पिछड़ों का दुख-दर्द सुना गया. सम्मेलनों का मकसद पिछड़ों को अपने पाले में करना था. अब बीजेपी का इरादा यूपी के हर जिले में ऐसी बैठकें करने का है. कोशिश पिछड़ी जातियों के बूते नरेन्द्र मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने की है. लिहाजा सीएम, डिप्टी सीएम से लेकर पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता इस बिरादरी को लुभाने की कोशिशों में लगा है.

बीजेपी की राह चली समाजवादी पार्टी

बीजेपी के जातीय सम्मेलनों ने विपक्ष की नींद उड़ा दी. खतरे को भांपते हुए समाजवादी पार्टी ने भी पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करने का फ़ैसला किया है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यूपी के सभी 75 जिलों में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करने का एलान कर दिया है. इसकी शुरुआत अमेठी से हो चुकी है. समाजवादी पार्टी लगभग हर दिन किसी न किसी जिले में ऐसे सम्मेलन आयोजित करेगी. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले बीजेपी के इन सम्मलेनों की आलोचना की थी. हालांकि अब वो उसी राह चल पड़े हैं. कहा जा रहा है कि पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह की नसीहत के बाद अखिलेश यादव ने ओबीसी सम्मेलन कराने का फैसला किया है. अमेठी के बाद सुलतानपुर, जौनपुर, भदोही, वाराणसी, चंदौली, सोनभद्र, मीरजापुर, इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर और रायबरेली में सम्मेलन आयोजित होंगे.

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बसपा, कांग्रेस की भी ओबीसी पर नजर

बसपा प्रमुख मायावती की नजर भी ओबीसी वोट बैंक पर है. मायावती दलित, मुस्लिम और पिछड़ों का मजबूत गठजोड़ बनाना चाहती हैं. यूं तो बसपा के सपा से तालमेल की चर्चा चल रही है लेकिन मायावती कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं. मायावती ने निर्देश दिए हैं कि दलित और मुस्लिम समाज के साथ पिछड़ेवर्ग के नेताओं को भी संगठन में उचित स्थान दिया जाए. मायावती ने बीएसपी नेताओं को बूथ कमेटियों में इस बिरादरी के लोगों को सदस्य बनाने का आदेश दिया है. कांग्रेस भी पिछड़ा वर्ग सम्मेलन आयोजित कर चुकी है और खुद को इस वर्ग का सबसे बड़ा हिमायती बता रही है.

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क्यों अहम है ओबीसी वोट बैंक ?

यूपी का जातीय गणति देखें तो राज्य में पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या करीब 45 फीसदी है. इनमें 10 फीसदी यादव, 4-5 फीसदी कुर्मी, 4-5 फीसदी मौर्य, 3-4 फीसदी लोध और अन्य करीब 21 फीसदी हैं. ओबीसी के अलावा 21-22 फीसदी दलित, 18-20 फीसदी सवर्ण और 16-18 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. यानी राज्य में ओबीसी सबसे बड़ा वोट बैंक है. ये वर्ग जिस भी पाले में गया उसकी जीत आसान हो सकती है. शायद इसीलिए हर सियासी दल इस वोट बैंक पर डोरे डाल रहा है.

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