नई दिल्ली: लोकसभा में “एक देश, एक चुनाव” विधेयक को पेश करते समय भारतीय जनता पार्टी के 20 सांसद गैर-हाजिर थे, जबकि पार्टी ने तीन लाइन का व्हिप जारी किया था। यह वही व्हिप होता है, जब पार्टी अपने सांसदों को सदन में मौजूद रहने और पार्टी के पक्ष में वोट डालने के लिए आदेश देती है। इस स्थिति ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि व्हिप उल्लंघन के मामले में किस तरह सांसदों और विधायकों की सदस्यता जाती रही है। आइए जानते हैं कि व्हिप उल्लंघन पर अब तक किस-किस की सदस्यता गई है और इसके पीछे की पूरी प्रक्रिया क्या है।
1. बीजेपी सांसदों की गैरमौजूदगी से हुआ क्या असर?
लोकसभा में 18 दिसंबर को पेश किए गए “एक देश, एक चुनाव” विधेयक के दौरान 20 बीजेपी सांसदों का सदन में गैर-हाजिर रहना सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बना। खासतौर पर तब, जब पार्टी ने तीन लाइन का व्हिप जारी किया था। इनमें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नितिन गडकरी, शांतनु ठाकुर, भागिरथ चौधरी, विजय वघेल, उदयराज भोंसले, जगन्नाथ सरकार और जयंत कुमार रॉय जैसे नाम शामिल थे।
इन सांसदों की गैरमौजूदगी के कारण सरकार के पक्ष में सिर्फ 269 वोट पड़े, जबकि विपक्ष ने विधेयक के विरोध में 198 वोट डाले। अगर सभी बीजेपी सांसद सदन में मौजूद होते, तो बिल के पक्ष में लगभग 290 वोट पड़ सकते थे। अब पार्टी इन सांसदों को नोटिस भेज चुकी है और उनके खिलाफ कार्रवाई की संभावना पर विचार किया जा रहा है। हालांकि, अंतिम निर्णय पार्टी हाईकमान ही लेगा।
2. व्हिप का महत्व और नियम
व्हिप का मूल उद्देश्य राजनीतिक दलों द्वारा अपने सांसदों और विधायकों को सदन में अपने पक्ष में मतदान करने के लिए मजबूर करना है। यह मूल रूप से ब्रिटिश शासन के समय से अपनाया गया एक प्राचीन परंपरा है, जिसे आज भी राजनीतिक दल अपने अनुशासन को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
भारत में व्हिप जारी करने की प्रक्रिया 1985 के दल-बदल कानून से जुड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य पार्टी के खिलाफ वोटिंग करने या पार्टी बदलने की कोशिश करने वाले सांसदों या विधायकों को अयोग्य घोषित करना है। इस कानून के तहत व्हिप उल्लंघन पर सदस्यता रद्द करने का प्रावधान है। यह प्रावधान भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची में शामिल किया गया था।
3. व्हिप के प्रकार: क्या है तीन लाइन का व्हिप?
भारत में तीन प्रकार के व्हिप होते हैं:
- वन लाइन व्हिप: यह सबसे हल्का व्हिप होता है। इसमें पार्टी अपने सांसदों को सिर्फ सूचना देती है कि वे किसी खास विषय पर मतदान से दूर रह सकते हैं।
- दो लाइन का व्हिप: इस व्हिप के जरिए पार्टी अपने सांसदों से यह कहती है कि वे सदन में मौजूद रहें, लेकिन वोटिंग में भाग न लें।
- तीन लाइन का व्हिप: यह सबसे सख्त व्हिप माना जाता है। इसमें पार्टी अपने सभी सांसदों से कहती है कि वे सदन में मौजूद रहें और पार्टी के पक्ष में मतदान करें। तीन लाइन के व्हिप का उल्लंघन करने पर सांसद की सदस्यता तक रद्द की जा सकती है।
4. व्हिप उल्लंघन के मामलों में सांसदों और विधायकों की सदस्यता गई
व्हिप उल्लंघन के कारण कई सांसदों और विधायकों की सदस्यता जा चुकी है।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के 6 विधायक
इस साल 2024 की शुरुआत में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के 6 कांग्रेस विधायकों की सदस्यता व्हिप उल्लंघन के आरोप में चली गई। मामला राज्यसभा चुनाव से जुड़ा था। कांग्रेस के ये विधायक मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के खिलाफ बगावत करके चंडीगढ़ चले गए थे। यह बगावत तब हुई थी जब विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था और सरकार को फाइनेंशियल बिल पास कराना था। चूंकि इन विधायकों ने सरकार के व्हिप का उल्लंघन किया और वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया, उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई।
2008 में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान
2008 में मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव रखा गया था। इस दौरान कांग्रेस पार्टी के कुलदीप बिश्नोई और समाजवादी पार्टी के जयप्रकाश रावत समेत कई सांसदों ने व्हिप उल्लंघन किया। इन सांसदों की सदस्यता रद्द कर दी गई थी।
2010 में अमर सिंह और जया प्रदा का मामला
2010 में समाजवादी पार्टी के दो बड़े नेता, अमर सिंह और जया प्रदा, पर व्हिप उल्लंघन का आरोप लगा। उस समय समाजवादी पार्टी ने अपने सांसदों को पार्टी के पक्ष में वोट करने का आदेश दिया था, लेकिन अमर सिंह और जया प्रदा व्हिप का उल्लंघन करने में लिप्त थे। इसके बाद उनकी सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की गई। हालांकि, अमर सिंह ने तुरंत इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत ली, लेकिन बाद में वह खुद संसद से बाहर हो गए, क्योंकि उनका कार्यकाल खत्म हो चुका था।
5. व्हिप उल्लंघन पर क्या हो सकती है कार्रवाई?
व्हिप उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई की प्रक्रिया काफी जटिल हो सकती है। यदि कोई सांसद व्हिप का उल्लंघन करता है, तो पार्टी के अंदर से पहले उसे नोटिस भेजा जाता है। इसके बाद, अगर सांसद अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाता है, तो पार्टी उस पर कार्रवाई करती है, जिसमें सदस्यता रद्द करने का सुझाव दिया जाता है। यह फैसला अंत में स्पीकर द्वारा लिया जाता है।