प्रयागराज का महाकुंभ, हरिद्वार और उज्जैन के कुंभ से क्यों है ज्यादा अहम? जानें 144 साल बाद बना खास संयोग

प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन शुरू हो चुका है, और हर तरफ भक्तों की भीड़ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने पहुंच चुकी है। यह मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक घटना है। महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों पर होता है: हरिद्वार (गंगा), उज्जैन (शिप्रा), नासिक (गोदावरी), और प्रयागराज (त्रिवेणी संगम)। लेकिन इस बार प्रयागराज का महाकुंभ बाकी तीनों स्थानों से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है, तो आइए जानते हैं ऐसा क्यों है।
कुंभ का महत्व और पौराणिक मान्यता
कुंभ मेला, हिंदू धर्म में एक खास स्थान रखता है। यह आयोजन उस समय होता है जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य ग्रह मेष राशि में प्रवेश करता है। इस संयोग के तहत कुंभ मेला आयोजित होता है, और इस दौरान हर जगह लाखों की तादाद में श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं। हालांकि, प्रयागराज का कुंभ मेला सबसे अहम माना जाता है, और इसके पीछे पौराणिक और ज्योतिषीय कारण हैं।
सागर मंथन से जुड़ी पौराणिक कथा
कुंभ मेले का संबंध सागर मंथन से है, जो हिंदू धर्म के महानतम ग्रंथों में वर्णित है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और राक्षसों ने मिलकर सागर मंथन किया, जिसमें अमृत की प्राप्ति हुई। लेकिन राक्षसों ने अमृत को छीनने की कोशिश की, इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं, और यह बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं। इसलिए इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
आदि शंकराचार्य का योगदान
महाकुंभ का आयोजन बहुत पुराना है, लेकिन इसके औपचारिक शुरुआत के बारे में कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने महाकुंभ की परंपरा को प्रारंभ किया था। उनका मानना था कि यह मेला धार्मिक आस्थाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गुप्त काल के दौरान भी इस मेले का आयोजन हुआ था। सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल से कुंभ मेले के आयोजन के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद शंकराचार्य और उनके शिष्यों ने प्रयागराज में संगम तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की थी।
संगम में शाही स्नान और मोक्ष की मान्यता
प्रयागराज का महाकुंभ इसलिए खास है क्योंकि यहां तीन पवित्र नदियों – गंगा, यमुना और सरस्वती – का संगम होता है। सरस्वती नदी का तो अस्तित्व अब नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह नदी भूमिगत बहती है। इस संगम में स्नान करने से पाप समाप्त हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसीलिए प्रयागराज का कुंभ मेला बाकी कुंभ मेलों से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है।
144 साल बाद बना खास संयोग
इस बार प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन 144 साल बाद हो रहा है। इस संयोग का विशेष महत्व है क्योंकि महाकुंभ का आयोजन सामान्यतः हर 12 साल में होता है, लेकिन 144 साल बाद जब यह मेला आयोजित हो रहा है, तो इस बार एक विशेष ज्योतिषीय संयोग बन रहा है। कुंभ पुराण में कहा गया है कि हर छह साल में अर्ध कुंभ और 12 साल में पूर्ण कुंभ होता है, लेकिन जब 12 पूर्ण कुंभ पूरे हो जाते हैं, तो महाकुंभ का आयोजन होता है।
प्रयागराज महाकुंभ का विशेष महत्व
प्रयागराज महाकुंभ इस बार विशेष रूप से अहम है क्योंकि यहां संगम में स्नान करने के लिए 10 से 12 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। इस महाकुंभ के दौरान आध्यात्मिक और भौतिक दृष्टि से कई लाभ मिलते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाकुंभ के दौरान देवलोक के द्वार खुलते हैं और देवता भी पृथ्वी पर आकर संगम में स्नान करते हैं। शिव पुराण में भी कहा गया है कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और माता पार्वती अन्य कैलाशवासियों के साथ वेश बदलकर कुंभ मेले में आते हैं।
ज्योतिषीय संयोग और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
इस बार प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान एक खास ज्योतिषीय संयोग बन रहा है। सूर्य, बृहस्पति, शनि और चंद्रमा ग्रहों की स्थिति सागर मंथन के समय जैसी बन रही है। इस संयोग का पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर असर पड़ता है, जिससे मनुष्य के शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसका मतलब है कि महाकुंभ सिर्फ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
प्रयागराज महाकुंभ: धार्मिक और सामाजिक समरसता का प्रतीक
प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता भी देखने को मिलती है। यहां पर संतों, योगियों और ऋषियों का ध्यान और साधना एक खास समय होता है। इसके साथ ही यह मेला एक बड़े सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम बनता है। इस दौरान भक्तों के साथ-साथ संत और श्रद्धालु धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एकजुट होते हैं।
अंतिम शब्द: महाकुंभ का महत्व
इस बार का महाकुंभ न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का प्रतीक भी है। 144 साल बाद बना यह संयोग इस महाकुंभ को और भी खास बनाता है। इसलिए अगर आप इस महाकुंभ का हिस्सा बन रहे हैं, तो यह आपके लिए एक अनमोल अनुभव होगा।

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