लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ सड़कों को गड्ढामुक्त करने के काम से खुश नहीं हैं. उन्होंने लोक निर्माण विभाग के अफसरों को इस महीने भर का समय दिया है. चेतावनी दी है कि एक नवम्बर से वह औचक मुआयना करेंगे. अगर, सड़क पर गढ्ढे मिले तो खैर नहीं रहेगी. मुख्यमंत्री का प्रदेश की सड़कों पर सीधा दखल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है. वो इसलिए क्योंकि यह महकमा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का है और वह इनदिनों अपने पिता की मृत्यु को लेकर शोक में हैं.
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सूबे की सड़कों पर गढ्ढे ही गढ्ढे हैं यह विधानसभा चुनाव प्रचार में खूब बोला गया था. इसी वजह से योगी सरकार बनते ही 15 जून तक मियाद तय करके गढ्ढा मुक्ति अभियान चला. दस हजार करोड़ रुपए का बजट लगा मगर सड़कें तय सीमा में गढ्ढा मुक्त नहीं हो सकीं. हाल आज भी वैसा ही है मगर सोमवार को सीएम अचानक संजीदा हुए. उन्होंने भवन में गढ्ढा मुक्त अभियान की समीक्षा की. लोक निर्माण विभाग के आला अफसरों को खूब हड़काया. निर्देश दिए कि सम्बंधित विभागों से समन्वय बनाकर पीडब्लूडी वाले 31 अक्टूबर तक सारी सड़कें गढ्ढा मुक्त करें. इसके बाद वह खुद सड़कों का सच जमीन पर देखेंगे. उन्होंने कहा कि सम्बन्धित विभागों की सड़कों पर उनका साइन बोर्ड लगाया जाए. सड़कों को गड्ढामुक्त करने तथा निर्माण कार्य में लगे ठेकेदारों को सड़कों की मरम्मत तथा निर्माण के बाद पांच वर्ष तक उसकी देखरेख की जिम्मेदारी भी शर्तों में शामिल की जाए.
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यूं तो मुख्यमंत्री किसी भी विभाग की समीक्षा कर सकता है मगर पीडब्ल्यूडी के मामले में उनकी सख्ती के दुसरे मायने भी निकाले जा रहे हैं. डिप्टी सीएम केशव मौर्य और सीएम के बीच शीत युद्ध की खबरें शुरू से चर्चा में रही हैं. वाराणसी में पुल हादसे के बाद मौर्य की सहमति के बिना उनके आधीन पीडब्लूडी के अफसरों को निलंबित करने की बात चर्चा में आयी थी. सीएम ने सीधा एक्शन लिया था. फिलहाल मौर्य अपने घर कौशाम्बी में हैं. पिता के निधन के बाद कर्म काण्ड में लगे हैं. उनकी गैरमौजूदगी में सीएम ने ना सिर्फ काम निपटाने की समय सीमा तय की है बल्कि अपने कठोर इरादे भी जाहिर कर दिए हैं. बताया गया है कि वह सड़कों की दशा को लेकर असंतुष्ट हैं. लेकिन मामला चूंकि केशव मौर्य से जुड़ा है इसलिए उनकी सख्ती के निहितार्थ भाजपा और सरकार का एक वर्ग तलाश रहा है. इसे भी शीत युद्ध की परिणति ही बता रहा है.