नई दिल्ली: बीजेपी-मोदी और मोदी-बीजेपी हो गए हैं. ये मोदी के व्यक्तित्व का प्रताप है कि महज चार सालों में ही मोदी ने अपने शागिर्द अमित शाह के साथ पार्टी और सत्ता पर ऐसा प्रभाव डाला है कि पार्टी की ख्याति से ऊपर निकल गए हैं. जिसके बाद संघ के पदाधिकारी भी दबी जुबान में कहते हैं, कि मोदी को काबू करना किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि संघ से लेकर पार्टी संगठन में मोदी के खिलाफ एक शब्द बोलने का मतलब सब जानते हैं. लेकिन अब सरकार और संगठन को काबू में करने के लिए आरएसएस ने नई आक्रामक रणनीति अपनाई है. जिसके बाद राजनीति के पुरोधाओं ने मोदी और शाह पर लगाम लगाने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है.
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राफेल में कथित घोटाले में घिरी मोदी सरकार को अपनों ने भी सिर दर्द देना शुरु कर दिया है. एक तरफ पांच राज्यों में चुनाव है, मोदी और बीजेपी की साख दांव पर है. दूसरी तरफ 2019 में सत्ता वापसी की चुनौती मुंह बाये खड़ी है. हमलावर कांग्रेस से निपटने के साथ संघ ने भी मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है. अब तक गाहे बगाहे संत राम मंदिर को लेकर कानून बनाने की मांग उठाते रहे हैं. मुश्किल ये हैं कि अब आवाज आरएसएस की तरफ से उठाई गई है. जिसको मोदी सरकार हलके में नहीं ले सकती. संघ की तरफ से खुद सरसंघचालक मोहन भागवत ने ये बात कहकर मोदी सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है. राममंदिर की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. कुछ दिनों में फैसला आने की उम्मीद है. वहीं संघ इंतजार करने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं.
भागवत ने राम मंदिर पर मांगा कानून
नागपुर में संघ की दशहरा रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने राम मंदिर की बात छेड़ी. भागवत ने कहा कि अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर होने के सब प्रकार के साक्ष्य मौजूद होने के बावजूद वहां मंदिर निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध नहीं हो पा रही है. न्यायिक प्रक्रिया में तरह-तरह की नई बातें पैदाकर, निर्णय न होने देने का स्पष्ट खेल कुछ शक्तियां खेल रही हैं. यहां उन्होंने बिना नाम लिए कांग्रेस की तरफ इशारा करते हुए कहा कि देशहित के इस कार्य में कुछ शक्तियां कट्टरपंथी एवं सांप्रदायिक राजनीति को उभारकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रही हैं. वह ऐसे छल-कपट के बावजूद उस भूमि के स्वामित्व के संबंध में शीघ्रातिशीघ्र निर्णय करे और कानून बनाकर श्रीराम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें. इसका मतलब है कि चुनाव 2019 के पहले जो मांग कई सालों से देश के संत उठाते रहे हैं, उसको अबतक बीजेपी और मोदी ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. अब जबकि मांग संघ ने की है तो मोदी की मुश्किल बढ़ गई है. इसके साथ ही संघ की सरकार और मोदी पर लगाम लगाने की दृष्टि से भी देखा जा रहा है.
लखनऊ में बैठक कर उठाएंगे मांग
मोदी पर दबाव की रणनीति अपनाकर संघ जल्द ही लखनऊ में एक बड़ा कार्यक्रम करने जा रही है. जिसमें निश्चित तौर पर राम मंदिर को लेकर कोई बड़ा निर्णय हो सकता है. 24 अक्टूबर को होने वाले इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारी और बीजेपी के पदाधिकारी भी होंगे. जिसमें संघ और बीजेपी के बीच समन्वय बैठाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. बैठक में संघ के डॉ दतात्रेय होस बोले और डॉक्टर कृष्ण गोपाल के अलावा सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय भी शामिल होंगे. जिसमें अयोध्या में राम मंदिर पर चर्चा भी होने की संभावना है. जिसमें लोकसभा की रणनीति और योगी सरकार के कामकाज की समीक्षा भी होगी. बैठक में पार्टी और संघ के 500 पदाधिकारियों के आने की उम्मीद है.
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पहले भी उठ चुकी है कानून बनाने की मांग
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब कानून बनाकर राम मंदिर बनाने की मांग उठी है. इससे पहले डा. रामविलास वेदांती, चिदानंद पुरी (केरल), स्वामी चिन्मयानंद व स्वामी अखिलेश्वरानन्द सहित देश भर के संत जगतगुरुओं, महामण्डलेश्वरों व अन्य धर्माचार्यों ने कानून बनाने की मांग का पुरजोर तरीके से उठा चुके हैं. साथ ही महंत नृत्य गोपालदास के नेतृत्व में संतों का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलाकर अपनी बात रख चुका है. इसके पहले विश्व हिन्दू परिषद भी कानून बनाकर सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर संसद से कानून बनाकर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाए जाने की मांग करता रहा है. जिसके लिए उसने सभी सभी राजनीतिक दलों को मिलकर इसे पूरा करने की बात कही थी. विहिप ने कहा था कि जिस प्रकार सरदार बल्लभ भाई पटेल और उस समय के राष्ट्रपति ने सोमनाथ में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था, हम उम्मीद करते हैं कि उसी प्रकार संसद में कानून बनाकर राम मंदिर का निर्माण हो.
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डिप्टी सीएम ने कानून को बताया था विकल्प
राम मंदिर के मुद्दे के 2014 में उठाकर मोदी सरकार में आए थे. लेकिन मामला कोर्ट में होने का हवाला देकर कुछ नहीं किया. हाल ही में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी बयान दिया था कि सरकार के पास संसद में कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण का विकल्प भी खुला हुआ है. मौर्य ने कहा था कि राम मंदिर का मुद्दा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है और उन्हें न्यायालय पर पूरा भरोसा है. उन्होंने कहा कि देश के करोड़ों लोग अयोध्या में राम मंदिर बनता हुआ देखना चाहते हैं और भाजपा के लिए यह आस्था का एक महत्वपूर्ण विषय है.
2019 में मुद्दा बनाने की तैयारी
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अब जबकि संघ की तरफ से मांग उठी है. तो देखने वाली बात होगी की मोदी और केंद्र की बीजेपी सरकार इस ओर क्या कदम उठाते हैं. साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता ही 2019 का चुनाव आते ही संघ ने बीजेपी की मदद करने और कानून बनाकर मंदिर निर्माण का दांव चला हो. ताकि कांग्रेस समेत दूसरी पार्टी अगर इसका समर्थन नहीं करती तो वो जनता के बीच विलेन के रुप में विपक्ष को पेश कर सकते हैं. अब सबकी निगाहें मोदी और केंद्र सरकार पर हैं वो राम मंदिर के मुद्दे को किस तरफ और कौन सा मोड देंगे.