अगर आपको लगता है कि भारत में सबसे ज्यादा पैसा रूस, अमेरिका, ब्रिटेन या जर्मनी डाल रहे हैं, तो आप गलतफहमी में जी रहे हैं! पिछले 7 साल से भारत का सबसे करीबी निवेशक दोस्त कोई और नहीं, बल्कि सिंगापुर है। जी हाँ, सिंगापुर वो देश है, जो भारत में सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कर रहा है। और खास बात? बीते वित्त वर्ष में सिंगापुर ने 1.28 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया, जो अमेरिका और जापान जैसे देशों के मुकाबले 3 से 5 गुना ज्यादा है। तो चलिए, आपको बताते हैं कि सिंगापुर और बाकी देश भारत में कितना पैसा झोंक रहे हैं।
सिंगापुर का सात साल से जलवा कायम
सिंगापुर पिछले सात साल से भारत में FDI का बेताज बादशाह बना हुआ है। 2024-25 में सिंगापुर से भारत को करीब 15 अरब डॉलर का निवेश मिला, जो पिछले साल के 11.77 अरब डॉलर से कहीं ज्यादा है। कुल मिलाकर पिछले वित्त वर्ष में भारत में FDI 14% बढ़कर 81.04 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा है। सिंगापुर का योगदान इस बार कुल FDI का लगभग 19% रहा। 2018-19 से तो सिंगापुर लगातार भारत में सबसे ज्यादा निवेश करने वाला देश बना हुआ है।
इन देशों ने भी खोला खजाना
पहले, यानी 2017-18 में, मॉरीशस भारत में सबसे ज्यादा FDI लाने वाला देश था। लेकिन बीते वित्त वर्ष में मॉरीशस से 8.34 अरब डॉलर का निवेश आया। इसके बाद नंबर रहा अमेरिका का (5.45 अरब डॉलर), फिर नीदरलैंड (4.62 अरब डॉलर), यूएई (3.12 अरब डॉलर), जापान (2.47 अरब डॉलर), साइप्रस (1.2 अरब डॉलर), ब्रिटेन (79.5 करोड़ डॉलर), जर्मनी (46.9 करोड़ डॉलर) और केमैन आइलैंड (37.1 करोड़ डॉलर)। जानकार बताते हैं कि सिंगापुर की मजबूत वित्तीय स्थिति, भारत के साथ अच्छे रिश्ते और ग्लोबल प्राइवेट इक्विटी व वेंचर कैपिटल का गेटवे होने की वजह से वो FDI में टॉप पर है।
जानकारों की जुबानी
डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार का कहना है कि वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल और ट्रेड से जुड़ी अनिश्चितताओं के बावजूद भारत ने भारी-भरकम विदेशी निवेश खींचने में कामयाबी हासिल की है, वो भी स्टेबल और लॉन्ग-टर्म। उनका कहना है कि एशिया में विदेशी पूंजी का दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना होने की वजह से सिंगापुर से भारी फंड आता है। सिंगापुर का टैक्स सिस्टम हल्का और कानूनी ढांचा मजबूत है, जिसके चलते उसे एशिया का स्ट्रैटेजिक फाइनेंशियल गेटवे माना जाता है। साथ ही, भारत और सिंगापुर के बीच डबल टैक्सेशन से बचाव की संधि की वजह से सिंगापुर के संगठनों को भारत में निवेश करना आसान होता है और उनकी कमाई पर टैक्स का बोझ भी कम पड़ता है।