असम: असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) की दूसरी और आखिरी सूची जारी कर दी गई है, जिसमें करीब 40,000 लोग अवैध पाए गए हैं. इसका मतलब यह है कि NRC ने जो ड्राफ्ट पेश किया है उसके तहत असम में रह रहे करीब 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया है. ऐसी स्थिति में जो सवाल सामने आ रहा है वो यह है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में ये लोग भारतीय हैं या फिर बांग्लादेशी.
NRC ने सोमवार को जारी की फाइनल लिस्ट
NRC की फाइनल लिस्ट सोमवार को जारी की गई जिसके लिए असम में वैध नागरिकता के लिए 3 करोड़ 29 लाख 91 हजार 384 लोगों ने एनआरसी में आवेदन किया था. इसमें से NRC की जारी सूची में 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक माना गया है, जबकि 40 लाख 7 हजार 707 लोगों अवैध कहा गया है.
क्या है इन 40 लाख से भी ज्यादा लोगों के अवैध ठहराए जाने की वजह
इन 40 लाख लोगों में उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो चोरी छिपे बांग्लादेश से आकर असम में रह रहे थे. ये लोग NRC में भारतीय दस्तावेज पेश करने में असफल रहे. इसके अलावा NRC की तकनीकी खामियों के चलते जिनके नाम छूट गए हैं, इस सूची में वे लोग भी हो सकते हैं. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो NRC में कागजी वैध दस्तावेज की कार्रवाई पूरी नहीं कर सके, जिसके चलते उन्हें अवैध करार कर दिया गया.
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इतना ही नहीं, इन 40 लाख लोगों में ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिनके पास 25 मार्च 1971 से पहले की नागरिकता के कोई भी वैध दस्तावेज नहीं हैं, जिसके चलते NRC ने उन्हें वैध नागरिक नहीं ठहराया.
NRC के राज्य समन्वयक ने कहा जारी हुआ ड्राफ्ट अंतिम लिस्ट नहीं
हालांकि, NRC के राज्य समन्वयक ने फाइल ड्राफ्ट जारी होने के बाद कहा कि यह ड्राफ्ट अंतिम लिस्ट नहीं है, जिन लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, वे अपनी आपत्ति और शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
अवैध करार दिए गए लोगों को अपने वैध दस्तावेज साबित करने के लिए दो महीने का समय दिया गया है। इसके लिए सरकार ने NRC के 2500 ट्रिब्यूनल ऑफिस बनाए हैं. वहां इन लोगों को 25 मार्च 1971 से पहले की अपनी नागरिकता के वैध दस्तावेज पेश करने होंगे.
अवैध तरीके से रह रहे लोगों को निकालने के लिए NRC अभियान
बता दें कि असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को निकालने के लिए सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) अभियान चलाया है. दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में गिने जाने वाला यह कार्यक्रम डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट आधार पर है. यानी कि अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहले पहचान की जाएगी फिर उन्हें वापस उनके देश भेजा जाएगा.
असम में घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए यह अभियान करीब 37 सालों से चल रहा है. 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से पलायन कर लोग भारत भाग आए और यहीं बस गए. इस कारण स्थानीय लोगों और घुसपैठियों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हुईं. 1980 के दशक से ही यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन हो रहे हैं.
BJP ने बनाया चुनावी मुद्दा, 2005 में NRC के लिए समझौता
असम में सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ता चला गया. 2005 में राज्य और केंद्र सरकार में NRC लिस्ट अपडेट करने के लिए समझौता किया. धीमी रफ्तार की वजह से मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
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इस मुद्दे पर कांग्रेस जहां सुस्त दिखी. वहीं, BJP ने इस पर दांव खेल दिया. 2014 में BJP ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया. मोदी ने चुनावी प्रचार में बांग्लादेशियों को वापस भेजने की बातें कहीं. इसके बाद 2015 में कोर्ट ने NRC लिस्ट अपडेट करने का भी आदेश दे दिया. 2016 में राज्य में BJP की पहली सरकार बनी और अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को वापस भेजने की प्रक्रिया फिर तेज हो गई.
1979 में चला था सबसे पहला आंदोलन
सबसे पहले घुसपैठियों को बाहर निकालने का आंदोलन 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने शुरू किया. यह आंदोलन हिंसक हुआ और करीब 6 साल तक चला. हिंसा में हजारों लोगों की मौत हुई.
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हिंसा को रोकने 1985 में केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ. उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद के नेताओं में मुलाकात हुई. तय हुआ कि 1951-71 से बीच आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी और 1971 के बाद आए लोगों को वापस भेजा जाएगा. आखिरकार सरकार और आंदोलनकारियों में बात नहीं बनी और समझौता फेल हो गया.
जनवरी में आया था पहला ड्राफ्ट
असम में सरकार ने बीते जनवरी में ने NRC का पहला ड्राफ़्ट जारी किया था. इसमें 3.29 करोड़ लोगों में से सिर्फ 1.9 करोड़ को ही भारत का वैध नागरिक माना गया है.