करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र राम मंदिर विवाद 6 दशक पुराना है. ये जितना पुराना है उतना ही जटिल है. जिसे समझने के लिए 15 वीं शताब्दी में जाना होगा. क्योंकि बात पहले सिरे से नहीं होगी तो बात बनेगी नहीं.
राममंदिर विवाद की नींव 1526 में पड़ी थी. जब मुगल बादशाह बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को जंग में हराकर दिल्ली की गद्दी पर अपना कब्जा जमा लिया था.
इसी के बाद भारत में मुगलिया साम्राज्य फैलता चला गया. बाबर की इसी मुहिम के तहत उसके ख़ास सिपहसालार मीर बाक़ी ने अवध के इलाके को अपने कब्ज़े में ले लिया था. जिसके बाद मीर बाक़ी ने 1528 में अयोध्या के रामकोट में एक मस्जिद का निर्माण करवाया. जहां मस्जिद के पास भगवान राम की जन्मभूमि थी. मस्जिद के बाहरी हिस्से में हिन्दू पूजा-अर्चना करते रहे। वहीं मस्जिद के अंदर मुसलामानों ने नमाज पढ़ना जारी रखा.
आजादी के बाद हिन्दुओं ने उठाई मांग
मुगलों के राज में हिन्दुओं की आवाज दबी रही. अंग्रेजों के दौर में भी हिन्दू पक्ष की तरफ से कई बार मस्जिद को अपने कब्ज़े में दिए जाने की गुहार लगायी गयी. जिसे फैज़ाबाद के कमिश्नर ने इसे ये कहते हुए ठुकरा दिया कि भले ही मस्जिद की जगह पर पहले मंदिर रहा हो. लेकिन अब सैंकड़ों साल के बाद इस स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता. लेकिन देश की आजादी के बाद इस विवाद ने नया मोड़ लेना शुरू किया.
अचानक प्रकट हो गईं जब मूर्तियां
अयोध्या मुद्दे ने पहली बार साल 1949 में आग पकड़ी. इसी साल दिसंबर महीने में एक दिन मस्जिद के अंदर और मुख्य गुम्बद के नीचे रात के वक्त भगवान राम और सीता की मूर्तियां निकली. इसके बाद जनवरी 1950 में गोपाल सिंह विशारद नाम ने फैजाबाद की अदालत में पहला मुकदमा दाखिल करके इस जगह पर पूजा करने की इजाजत मांगी. दिसंबर 1950 में दूसरा मुकदमा दाखिल हुआ और इस बार राम जन्मभूमि न्यास की तरफ से महंत परमहंस रामचंद्र दास ने भी कोर्ट से पूजा की करने की अनुमति मांगी.
निर्मोही अखाड़ा ने किया दावा
दिसंबर 1959 में निर्मोही अखाड़े ने भी रामजन्मभूमि पर अपना दावा ठोक दिया. अखाड़े ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से वही अयोध्या में राम मंदिर की देखभाल करता रहा है. और इस आधार पर अखाड़े ने विवादित जगह को अपने कब्जे में दिए जाने की कोर्ट से मांग की. वहीं मस्जिद में मूर्तियां मिलने के 12 साल बाद दिसंबर 1961 में सुन्नी सेन्ट्रल वक़्फ बोर्ड ने फैज़ाबाद की कोर्ट में अर्ज़ी लगाई. बोर्ड ने मूर्तियों को हटाने और मस्जिद पर कब्ज़े की मांग की. अप्रैल 1964 में फैजाबाद कोर्ट ने सभी 4 अर्जियों पर एक साथ सुनवाई का फैसला लिया. हालांकि मंदिर मुद्दे का ये पूरा मामला फैजाबाद कोर्ट में भी टलता रहा.
भगवान राम बने जब पार्टी
इसी बीच 1989 में इलाहबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान की तरफ से कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी. दरअसल जो लोग खुद मुकदमा दाखिल नहीं कर सकते उनके लिए कानून में दिए गए प्रावधान के मुताबिक अग्रवाल ने खुद को भगवान राम का प्रतिनिधि बताया और सारी जमीन रामलला को सौंपने की मांग की. देवकी नंदन अग्रवाल की अर्ज़ी पर 1989 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने अब तक दाखिल सभी 5 दावों पर खुद सुनवाई करने का फैसला किया और सुनवाई के लिए तीन जजों की विशेष बेंच का गठन भी किया गया.
खुदाई में मिले राम मंदिर के निशान
2002 में हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू की. हाईकोर्ट ने हिन्दू पक्ष के दावे की पुष्टि के लिए विवादित जगह पर खुदाई कराने का फैसला लिया. खुदाई का जिम्मा आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को सौंपा गया. एएसआई की टीम ने यहां कई दिनों तक खुदाई की. इसके बाद उसने जो रिपोर्ट सौंपी उसमें बाबरी मस्जिद वाली जगह पर भव्य हिन्दू मंदिर होने की बात कही गई.
2010 में तीन भागों में बांटी जमीन
साल 2010 में हाई कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सभी दावों पर सुनवाई पूरी की, और आखिरकार 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस सुधीर अग्रवाल, एस यू खान और डी.वी. शर्मा की बेंच ने मंदिर मुद्दे पर अपना फैसला भी सुना दिया.
एएसआई ने जमीन से निकाले सबूत
हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की तरफ से विवादित जमीन पर कराई गई खुदाई के नतीजों के आधार पर ये भी माना कि बाबरी मस्जिद से पहले वहां पर एक भव्य हिन्दू मंदिर था. रामलला के वर्षों से मुख्य गुम्बद के नीचे स्थापित होने और उस स्थान पर ही भगवान राम का जन्म होने की मान्यता को भी फैसले में तरजीह दी गई.
तीनों जजों ने माना राममंदिर था
हालांकि कोर्ट ने ये भी माना कि इस ऐतिहासिक तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वहां साढ़े चार सौ सालों तक एक ऐसी इमारत थी. जिसे मस्जिद के रूप में बनाया गया था. बाबरी मस्जिद के बनने के पहले वहां मौजूद मंदिर पर अपना हक बताने वाले निर्मोही अखाड़े के दावे को भी अदालत ने मान्यता दी. तमाम तथ्यों और बातों को देखते हुए जजों की बेंच ने अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया. बेंच ने ये तय किया कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति स्थापित है. उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए. राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. और बचा हुआ एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया जाए.
हाईकोर्ट का फैसला नहीं हुआ मंजूर
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सभी पक्षों के दावों में संतुलन बनाने की कोशिश की लेकिन कोई भी पक्ष इस आदेश से संतुष्ट नहीं हुआ. हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अयोध्या की विवादित जमीन पर दावा जताते हुए रामलला विराजमान की तरफ से हिन्दू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. और इसके बाद कई और पक्षों की तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई है.
अगली तारीख का अब भी इंतजार
इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी और अब ये पूरा मामला देश की सर्वोच्च अदालत में लंबित है. बार-बार सुनवाई करने की तारीख लगातार सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। अगली तारीख अब जनवरी की दी गई है। यानी अभी राम मंदिर में कितने दिन सियासत चलेगी। देश का माहौल कबतक तनाव में रहेगा राम ही जाने।