बरेली में 1992 में हुए चर्चित लाली एनकाउंटर में 32 साल बाद फैसला आया है। कोर्ट ने अपने फैसले में एनकाउंटर को फर्जी पाया है। केस की सुनवाई करते हुए अपर सेशन जज-12 पशुपति नाथ मिश्रा की अदालत ने इसे फर्जी एनकाउंटर बताया साथ ही आरोपी दरोगा युधिष्ठिर सिंह को आजीवन कारावास के साथ 20 हजार रूपए के अर्थदंड की सजा सुनाई।
ये था मामला
23 जुलाई साल 1992 में थाना कोतवाली में तैनात रहे दारोगा युधिष्ठिर सिंह ने मुकेश जौहरी उर्फ लाली को एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था। दारोगा ने अपने बचाव के लिए वारदात को मुठभेड़ दर्शाकर मृतक लाली पर लूट व जानलेवा हमला करने के आरोप में मुकदमा दर्ज करा दिया। दारोगा ने कोतवाली में रिपोर्ट लिखाई कि वह वारदात की शाम 7:45 बजे बड़ा बाजार से घरेलू सामान खरीद कर वापस लौट रहे थे। तभी 3 व्यक्तियों को पिंक सिटी वाइन शाप के सेल्समैन से झगड़ते हुए देखा था। एक व्यक्ति ने जबरन दुकान से शराब की बोतल उठा ली तो दूसरे ने दुकानदार के गल्ले में हाथ डाल दिया। सेल्समैन के विरोध करने पर एक व्यक्ति ने सेल्समैन पर तमंचा तान दिया।
इसके बाद दारोगा ने आरोपियों को ललकारा तो एक ने उन पर फायर झोंक दिया जिससे वह बाल-बाल बचे। दारोगा ने पुलिस को बताया कि अगर वह गोली नहीं चलाते तो बदमाश उनकी जान ले सकते थे। उन्होंने अपनी आत्मरक्षा में एक बदमाश पर अपने सरकारी रिवाल्वर से गोली चला दी। जिससे वह लहूलुहान होकर गिर पड़ा और बाकी 2 व्यक्ति मौके से फरार हो गए। मुकेश जौहरी उर्फ लाली की अस्पताल ले जाते समय मृत्यु हो गई थी।
इस केस में दारोगा ने लूट व जानलेवा हमला के आरोप में थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था। शराब विक्रेता के शपथ पत्र में कहा गया कि उसकी दुकान पर ऐसा कोई विवाद नहीं हुआ। इससे दरोगा अपने जाल में फंस गया। जांच में पाया गया कि मुकेश जौहरी उफर् लाली के साथ मुठभेड़ नहीं हुआ था। दारोगा ने जानबूझकर जान से मारने के इरादे से लाली पर गोली चलाई थी, जिससे उसकी मौत हो गई। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने सबूतों के आधार पर दरोगा का गुनाह साबित हो गया। इसके बाद दरोगा को जेल भेज दिया गया।