भैरवाष्टमी पर काल भैरव को अर्पित करें ये प्रसाद, मिलेगा शुभ फल
29 नवंबर को यानी आज है भैरवाष्टमी. इसी दिन भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था. मान्यता है कि इस दिन भगवान काल भैरव को काली उड़द की दाल से बने पकवानों का प्रसाद चढ़ाया जाता है. काली उड़द की दाल से बनी हर चीज को सरसों के तेल में ही पकाया जाता है. उड़द दाल से बनी दही बड़े, गुलगुल, इमरती, कचौड़ी, पकौड़ी आदि का भोग लगाने से भैरव प्रसन्न होते हैं. ई जगह इस दिन भगवान काल भैरव को शराब भी चढ़ाई जाती है.
क्यों कहते हैं काशी का कोतवाल
काशी नगरी की सुरक्षा का भार भगवान काल भैरव को सौंपा गया है. इसलिए भगवान काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता हैं. शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को काल भैरव का अवतार हुआ था. शास्त्रों के अनुसार भारत कि उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी. बाद में शिव के दो रूप उत्पन्न हुए. प्रथम को बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं. जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई. इसी लिए उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है. शिव के इस रूप की आराधना से भय और शत्रुओं से मुक्ति, संकट और मुकदमें आदि से छुटकारा मिलता है. काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप है.
काल भैरव का पूजा विधि
भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था. तब से इसे भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है. इसलिए काल भैरव की पूजा मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी पर करनी चाहिए. प्रतःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर भैरव जी के मंदिर में जा कर उनकी पूजा करनी चाहिए. इस दिन भैरव के वाहन कुत्ते को खिलाने का विशेष महत्व है. भैरव जी को काशी का कोतवाल माना जाता है. शास्त्रों में कहा जाता है कि भैरव की उपासना से भूत पिशाच और काल दूर रहता है.
भगवान काल भैरव की उपासना दुष्ट ग्रहों के प्रभाव को भी समाप्त करती है. इस दिन काल भैरव की उपासना के लिए ‘ऊँ भैरवाय नमः’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. श्री काल भैरव अष्टमी के दिन रात्रि जागरण भजन कीर्तन के साथ पान के पत्ते पर लौंग और बताशा प्रज्वलित करके भैरव जी की आरती करनी चाहिए. भैरव मंदिरों में हवन, कीर्तन, पूजन, अर्चना के साथ-साथ दही बड़े एवं इमरती का भोग लगाना चाहिए. भगवान काल भैरव प्रसन्न हो देते है शुभ फल.