लखनऊ: उत्तर प्रदेश में ब्लैक फंगस के मामले सामने आने शुरू हो चुके हैं। इसको लेकर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी यानी KGMU ने भी रिसर्च शुरू कर दिया है.KGMU के माइक्रोबायोलॉजी विभाग एन्टी फंगल टेस्ट की तयारी में जुटा है. इससे पता चलेगा कि फंगस पर कौन सी दवा कितनी कारगर है.
KGMU का माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने कोरोना की दस्तक के बाद 2020 में प्रदेश में सबसे पहले कोविड टेस्टिंग शुरू की थी. अब यही विभाग इस फंगस से लड़ाई में भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है. विभाग के प्रोफेसर डॉ. प्रशांत गुप्ता ने इस फंगस को लेकर ABP गंगा से कई अहम जानकारियां साझा कीं.
उन्होंने कहा कि असल मे ये ब्लैक फंगस नहीं है. म्यूकोरमायकोसिस ऐसा फंगस है जो ऐसी सतह पर पनपता है जहां शुगर की मात्रा अधिक हो. जैसे खराब होते फल, चीनी या अन्य सतह. यही वजह है कि ये फंगस अधिक शुगर वालों पर हमला कर रहा है. खास तौर से जो स्टेरॉइड्स इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि इनके इस्तेमाल से शुगर लेवल बढ़ जाता है. ये फंगस सांस की नली से प्रवेश कर ब्रेन तक जा सकता है और धमनियों में इन्फेक्शन करता है.
उन्होंने बताया, यह फंगस लंग्स, किडनी या शरीर के किसी भी अंग में इन्फेक्शन कर सकता है. अभी जो मामले आ रहे उनमें आंखों में सूजन, नाक से खून निकलना, दिखना बंद होना जैसे सिम्पटम है. सीवियर इन्फेक्शन होने पर बेहोशी आ सकती है.
डॉ. प्रशांत का कहना है, इस फंगस का पता लगाने में नेजल स्वाब के बजाए Biopsy सैंपल ज्यादा कारगर है. ये फंगस कई बार सिर्फ 2 से 3 दिन में पनप जाता है और मरीज को समस्या होती है. अभी इसके लिए 3 दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन अब लैब में कुछ एन्टी फंगल टेस्टिंग कर रहे हैं जिससे पता चलेगा कौन सी दवा कितनी कारगर है.
डॉ. प्रशांत ने बताया कि उनकी लैब में संबंधित फंगस का कल्चर तैयार कर उसकी जांच की जाएगी. इसके लिए कई हॉस्पिटल और मेडिकल इंस्टीट्यूशन्स से संपर्क किया गया है कि उनके यहां ऐसे मामले आये तो सैंपल भेजें.