लखनऊ, राजसत्ता एक्सप्रेस। आपदा के वक्त ऐसी निम्न सियासत की क्या जकोईरूरत, एक हजार बसों की सूची भेजी, उसमें भी आधी से ज्यादा बसों का फर्जीवाड़ा, 297 कबाड़ बसें, 98 आटो रिक्शा व एबुंलेंस जैसी गाड़ियां, 68 वाहन बिना कागजात के, ये कैसा क्रूर मजाक है, अगर बसें थीं तो राजस्थान,पंजाब, महाराष्ट्र में क्यूं नहीं लगाई। कांग्रेस की कलई खोलने वाली ये लाइनें.. कांग्रेस की विधायक अदिति सिंह की हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि अदिति सिंह कांग्रेस की ही होकर कांग्रेस की ही भद्द पीटने में क्यों लगी हैं। कांग्रेस में रहकर कांग्रेस को पानी पी पी कर क्यों कोस रहीं हैं। तो आपको बता दें कि अदिति सिंह ने ऐसा पहली बार नहीं किया है। वे कई मौकों पर कांग्रेस की खिलाफत कर चुकी हैं।
आपदा के वक्त ऐसी निम्न सियासत की क्या जरूरत,एक हजार बसों की सूची भेजी, उसमें भी आधी से ज्यादा बसों का फर्जीवाड़ा, 297 कबाड़ बसें, 98 आटो रिक्शा व एबुंलेंस जैसी गाड़ियां, 68 वाहन बिना कागजात के, ये कैसा क्रूर मजाक है, अगर बसें थीं तो राजस्थान,पंजाब, महाराष्ट्र में क्यूं नहीं लगाई।
— Aditi Singh (@AditiSinghINC) May 20, 2020
इससे पहले विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान जब प्रियंका गांधी लखनऊ में प्रदर्शन कर रही थीं, तब अदिति सिंह सत्र में पार्टी व्हिप का उल्लंघन कर विधानसभा में उपस्थित थीं। उस समय पार्टी की तरफ से उन्हें नोटिस भी जारी किया गया था, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। अदिति सिंह पिछले साल 22 से 24 अक्टूबर के बीच रायबरेली में आयोजित पार्टी के प्रशिक्षण सत्र से गायब थीं। पार्टी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था, लेकिन उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया।
अदिति सिंह ने भले ही कांग्रेस में हो लेकिन वो पार्टी लाइन से अलग बोलने में कोई मौका नहीं गंवातीं। ऑर्टिकल 370 हटाने को लेकर भी अदिति ने केंद्र की मोदी सरकार का समर्थन किया था जबकि कांग्रेस इसके विरोध में थी।
कांग्रेस की मजबूरी
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो अदिति सिंह आने वाले वक्त में कांग्रेस छोड़ दें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये। भाजपा उनके स्वागत के लिये तैयार बैठी है। अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि कांग्रेस अदिति पर कोई कार्रवाई करने से क्यों हिचक रही है। इसका एक सबसे बड़ा कारण हो सकता है कि यूपी में कांग्रेस हालत खस्ता है। राहुल अमेठी की सीट गंवा चुके हैं। रायबरेली में सोनिया गांधी ही अपनी सीट बचा पायी हैं। कांग्रेस चाहती है कि अदिति रायबरेली से पार्टी की अगुवाई करती रहें। लेकिन अदिति हैं कि मानती नहीं। अदिति लगातार पार्टी लाइन से अलग बयान देकर असहज स्थिति खड़ी करती रही हैं। यूपी में पार्टी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं इसलिये कांग्रेस कार्रवाई करने से पहले पूरा मौके देना चाहती है।
ऐसे हुई सियासत में एंट्री
रायबरेली को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। यहां की छह विधानसभा सीटों बछरावां, हरचंदपुर, रायबरेली सदर, सरेनी, ऊंचाहार और सलोन हैं। लंबे समय से यहां कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन 2017 तक रायबरेली सदर सीट पर कांग्रेस का कब्ज़ा नहीं रहा। वजह थी विधायक अखिलेश सिंह। अखिलेश सिंह के आपराधिक इतिहास के चलते उनका नाम बाहुबलियों में शामिल था। वह रायबरेली से पांच बार विधायक रहे। वह कांग्रेसी थे, लेकिन 2003 के एक हत्याकांड में कांग्रेस की किरकिरी होने के बाद पार्टी ने उन्हें निकाल दिया था, लेकिन वह निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते। अखिलेश सिंह 2012 में विधानसभा चुनाव से पहले पीस पार्टी में शामिल हो गए।
अखिलेश सिंह के बारे में कहा जाता है कि कांग्रेस से निकाले जाने के बाद यहां पर कोई भी नेता उनके सामने नहीं टिका। उनका खौफ इतना ज्यादा था कि कोई भी नेता यहां अपना प्रचार करने से डरता था। 2017 के चुनाव में अपनी गिरती सेहत को देखते हुए अखिलेश ने अपनी बेटी को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़वाकर विधानसभा भेजा। अखिलेश सिंह के निधन के बाद उनकी बेटी अदिति सिंह पिता की संजोई सियासत संभाल रही हैं।