कुलदीप द्विवेदी: गठबंधन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर चर्चा में है। कभी केंद्र की राजनीति में अपना दम दिखाने और एचडी देवगौड़ा को पीएम बनाने वाले चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर दिल्ली की सियासत में इंट्री मारी है। इसबार खास बात ये है कि कांग्रेस के खिलाफ अपनी पार्टी खड़ी करने और तीसरे मोर्चे को शक्ल देने वाले चंद्रबाबू नायडू पहली बार कांग्रेस का हाथ थामे नजर आ रहे हैं।
अटल बिहारी वाजपेई को बनाया था पीएम
नायडू वो शख्स हैं जो कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए हमेशा एनडीए के साथ और संयोजन में बराबर के भागीदार रहे। साथ ही अपने राज्य में सत्ता और वोटबैंक बचाने के लिए हाथ छिटककर दूर जाने में भी पीछे नहीं रहे। एचडी देवगौड़ा से लेकर बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेई तक की सरकार बनाई। लेकिन कभी कांग्रेस के करीब नहीं गए। लेकिन तीस साल बाद एक बार फिर राजनीति की नई धारा बहाने को नायडू तैयार हैं।
कांग्रेस साथ बनना चाहते हैं पीएम
अब आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने राहुल गांधी से मुलाकत करके महागठबंधन के मोतियों को संजोने का जिम्मा उठाया है। जिसके बाद एक बार फिर मोदी विरोधियों में जान आ गई है। नायडू ने दिल्ली दौरे पर राहुल के साथ मोदी और भाजपा को हराने का संकल्प लिया. साथ ही रांकपा के शरद पवार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला, सीपीआई (एम) के सीताराम येचुरी, सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव से गर्मजोशी से मुलाकात भी की है। इससे पहले वो बसपा सुप्रीमो मायावती से भी मिल चुके हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी उनकी इस मुद्दे पर बात हो चुकी है.
कांग्रेस की मजबूरी हैं चंद्रबाबू नायडू
देश की राजनीति में आए अचानक इस बदलाव के बाद सब हैरान है, कि आखिर कभी कांग्रेस के खिलाफ पार्टी खड़ी करने वाले चंद्रबाबू नायडू अचानक राहुल के साथ कैसे खड़े है। साथ ही कांग्रेस जो पानी पी पीकर चंद्रबाबू को कोसती थी। अब वो उनके साथ हाथ कैसे मिला सकते हैं। दरअसल इस मुलाकात के पीछे की राजनीति कुछ ऐसी है, जिसमें कांग्रेस को ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी। जो दूसरी पार्टियों को साध सके। क्योंकि कांग्रेस और खुद राहुल गांधी जानते हैं, कि वो इस काम के लिए उपयोगी नहीं है। क्योंकि सबकी प्रदेश में सरकार है और सोनिया गांधी के बाद कोई भी दल कांग्रेस के साथ राहुल की अगुवाई में साथ खड़ा होने में असहज महसूस करता है।
सबको साधने में ही बनेगी बात
वहीं चंद्रबाबू नायडू को भी महागठबंधन के सहारे केंद्र की राजनीति में कद बड़ा करने का मौका है। नायडू समझ गए हैं, कि पश्चिम बंगाल की ममता हो, या यूपी की माया। कांग्रेस और सपा जैसे दल मौका पड़ने पर नया दांव चल सकते हैं। जबकि उनकी मौजूदगी से मोदी के खिलाफ खड़े होने पर उनको सभी का समर्थन मिल सकता है। क्योंकि शुरु से ही संतुलित राजनीति करने के आदी नायडू ने कभी अतिवादी और एक लाइन में चलने से परहेज किया है। जबकि माया दलित, ममता तुष्टिकरण, अखिलेश का जातिवादी रवैया उनका कद घटाने के लिए काफी है। ऐसे में अगर महागठबंधन होता है, और बहुमत के आसपास सीटें मिलती है, तो चंद्रबाबू वो कमाल कर सकते हैं, जो आज से 20 साल पहले वो नहीं कर पाए थे। यानी मोदी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस को भी अगर कोई सेनापति नजर आ रहा है तो वो चंद्रबाबू नायडू के अलावा बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता है।
नीतीश जैसा न हो हाल
चंद्रबाबू नायडू जो प्रयोग अब कर रहे हैं, वैसा प्रयोग और प्रयास नीतीश कुमार भी कर चुके हैं। 2014 उनकी आंखों में भी पीएम का सपना, महागठबंधन की माला के सहारे दिख रहा था। लेकिन मोदी का जादू ऐसा चला और महागठबंधन की मटकी फूट गई। जिसके बाद नीतीश कुमार को अपनी गलती का अहसास हुआ और अब दोबारा यथास्थिति में पहुंच गए हैं।