नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में पदोन्नति में आरक्षण के नए कानून को सही ठहराया है। सुप्रीम कहा है कि राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति के पिछड़ेपन के आंकड़े एकत्र किए हैं। रत्ना प्रभा समिति ने सभी सरकारी विभागों के आंकड़ों को एकत्र किया जिसके आधार पर राज्य सरकार ने पिछले साल कानून पारित किया।जस्टिस उदय उमेश ललित अर धनंजय चंद्रचूड की बेंच ने कर्नाटक सरकार के 2018 के उस कानून को बरकरार रखा जिसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति एवं वरिष्ठता क्रम में आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
जानिए किस माह में क्या नहीं खाना चाहिए, खाया तो कौन सा हो सकता है रोग
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उन्हें शासन में प्रतिभागी बनाना एक समान नागरिकता को अंतर्निहित करना है। अदालत ने कहा, यह नहीं कहा जा सकता कि अजा और अजजा वगरें से पदोन्नति पाने वाले दक्ष नहीं हैं या उनकी नियुक्ति से दक्षता कम हो जाएगी क्योंकि यह रुढ़िवादी संकल्पना है। केंद्र या राज्य के मामलों में प्रशासन की दक्षता को समग्रता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जहां समाज के अलग अलग वर्ग जनता द्वारा और जनता के लिए शासन की सच्ची महत्वाकांक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उन याचिकाओं पर सुनाया जिनमें कर्नाटक सरकार के अजा, अजजा कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित 2018 के कानून की वैधता को चुनौती दी गई थी।
जस्टिस चंद्रचूड ने बेंच की ओर से 135 पृष्ठ का जजमेंट लिखा है। पदोन्नति में आरक्षण को लेकर लम्बे समय से चले आ रहे विवाद पर यह फैसला नजीर बन सकता है।जस्टिस चंद्रचूड ने एससी, एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर की जरूरत को उपयुक्त नहीं माना। चंद्रचूड ने कहा, प्रमोशन के समय क्रीमी लेयर का सिद्धांत यहां लागू नहीं हो सकता। एससी और एसटी को सामूहिक पहचान के कारण सदियों तक शोषण का शिकार बने।
यदि दलित वर्ग अपनी सामूहिक पहचान से उबर सकता है तो क्रीमी लेयर की जरूरत पर विचार किया जा सकता है लेकिन फिलहाल इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट संविधान सभा की र्चचाओं का विशेष रूप से उल्लेख किया जिसमें साफतर पर कहा गया है कि भारतीय समाज में असमानता की जड़े बहुत गहरी हैं। संविधान असमानता को दूर करने में सहायक हो सकता है। इसीलिए अनुसूचित जाति अर जनजाति को विधायिका अर सरकारी नकरियों में आरक्षण दिया गया।