लखनऊ: यूपी में एक बार फिर रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के जन्मस्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. दरअसल, यूपी के सरकारी स्कूलों में 7वीं और 8वीं के बच्चों को जो किताब पढ़ाई जा रही है, उसमें तुलसी के जन्मस्थान के बारे में दो अलग-अलग जगह बताई गई हैं. वहीं, तुलसी पर शोध कर चुके एक धर्मगुरु के मुताबिक तुलसीदास नाम के एक नहीं, बल्कि चार लोग थे.
तुलसी को लेकर विवाद क्यों ?
तुलसीदास की जन्मस्थली कहां थी, ये विवाद काफी पुराना है. 2016 के दिसंबर में यूपी के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने गोंडा के शूकरखेत को तुलसी का जन्मस्थान बताकर तुलसी जयंती समिति को 20 लाख रुपए दे दिए थे. इससे कासगंज के सोरों कस्बे में विरोध शुरू हो गया था. सोरों के लोगों का मानना है कि तुलसी ने यहां जन्म लिया था. अब ये विवाद फिर खड़ा हो गया है, क्योंकि यूपी सरकार के सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी की जो किताबें 7वीं और 8वीं में पढ़ाई जा रही हैं, उनमें अलग-अलग जगह तुलसी का जन्म बताया गया है.
7वीं की किताब में कासगंज के सोरों को तुलसी का जन्मस्थान बताया गया है, जबकि 8वीं की किताब में तुलसी का जन्मस्थान चित्रकूट जिले का राजापुर गांव लिखा हुआ है.
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क्या कहते हैं धर्मगुरु ?
सनातन धर्म परिषद के अध्यक्ष स्वामी भगवदाचार्य का कहना है कि गोंडा का सूकरखेत राजापुर ही तुलसी का असली जन्मस्थान है. उनका कहना है कि रामचरित मानस की भाषा अवधी है. ऐसे में साफ है कि गोंडा में वो पैदा हुए. स्वामी भगवदाचार्य के मुताबिक मध्यकाल में तुलसी नाम के एक नहीं चार लोग थे. रामचरित मानस और रत्नावली को लिखने वाले तुलसीदास अलग-अलग थे. अंग्रेजों ने जिस तुलसी का जिक्र किया है, वो रामचरितमानस से अलग हैं. स्वामी भगवदाचार्य का कहना है कि गोंडा के राजापुर में आज भी तुलसी के पिता आत्माराम दुबे के नाम जमीन का रिकॉर्ड है. हिंदी साहित्यकार डॉ.रामचंद्र शुक्ल ने सूकरखेत में ही तुलसी का जन्मस्थान माना है.
अवध विश्वविद्यालय ने शोध कराने की बात कही थी
बता दें कि जुलाई 2018 में अवध विश्वविद्यालय ने फैसला किया था कि तुलसीदास के असली जन्मस्थान को लेकर शोध कराया जाएगा, ताकि हमेशा के लिए इस विवाद का अंत हो सके.
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तुलसी ने खुद का जन्म सूकरखेत में बताया
वैसे तुलसीदास की एक चौपाई है, जिसमें उन्होंने खुद का जन्म गोंडा के सूकरखेत में होना बताया है. इस चौपाई में तुलसीदास ने लिखा है-
बंदौ गुरुपद कंज, कृपा सिंधु नर रूप हरि।
महामोह तुम पुंज, जासु बचन रबि निकर कर।।
मैं पुनि निज गुरु सन सुनी, कथा सो सूकरखेत।
समुझी नहीं तसि बालपन, तब अति रहेऊं अचेत।।
यानी तुलसीदास लिखते हैं कि मैं हरि रूप गुरु के चरणों की वंदना करता हूं. आपके बोल सूरज की रोशनी सरीखे हैं. मैंने अपने गुरु के साथ सूकरखेत में कथा सुनी, लेकिन बालपन की वजह से तब इसे समझ नहीं सका.