नई दिल्ली: सरकार ने आगाह किया है कि कोरोना वायरस संक्रमण का अभी तक भले ही बच्चों में गंभीर प्रभाव नहीं हुआ है, लेकिन वायरस के व्यवहार या महामारी विज्ञान की गतिशीलता में परिवर्तन होने पर उनमें इसका प्रभाव बढ़ सकता है. इसके साथ ही सरकार ने कहा कि इस तरह की किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयारी जारी है.
नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल ने बताया, “हम आपको फिर से आश्वस्त करते हैं कि बाल चिकित्सा की जरूरतों का प्रबंध किया जाएगा और कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी.” उन्होंने बताया कि समीक्षा कर अनुमान लगाएंगे कि स्थिति बहुत बिगड़ने पर क्या जरूरत होगी और उसे अमल में लाया जाएगा.
पॉल ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुये कहा कि बच्चों में कोविड के बाद मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम देखा गया है. बच्चों में संक्रमण से होने वाली जटिलताओं पर गौर करने के लिये एक राष्ट्रीय समूह का गठन किया गया है. उन्होंने कहा कि बच्चों में सामान्य तौर पर संक्रमण का लक्षण नहीं होता है या फिर बेहद कम लक्षण दिखाई देते हैं.
न्होंने कहा, “अगर बच्चा संक्रमित होता हैं, तो गंभीर हालात नहीं बनते है और अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता दुर्लभ होती है۔” पॉल ने कहा, “वायरस अगर अपना व्यवहार बदलता है या फिर महामारी विज्ञान की गतिशीलता में परिवर्तन आता है, तो बच्चों से संबंधित स्थिति में भी बदलाव देखने को मिल सकता है. ऐसी हालत में हो सकता है कि कोविड का प्रभाव बच्चों में बढ़ जाए. उन्होंने कहा कि बच्चों में कोविड के दो स्वरूप देखे गये हैं. बच्चों को बुखार, उसके बाद कफ और बाद में सर्दी होती है, इससे निमोनिया हो जाता है जो बढता है और अंत में खराब होने पर बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आ जाती है.
पॉल ने कहा, “देखा गया है कि कोविड से ठीक होने के दो से छह सप्ताह बाद कुछ बच्चों को दोबारा बुखार चढ़ता है, आंखें सूज जाती हैं, दस्त, उलटी और रक्तस्राव की स्थिति बन जाती है, इसे मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम कहा जाता है.” उन्होंने बताया कि कोविड से संक्रमित दो से तीन प्रतिशत बच्चों को ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ सकती है.