नई दिल्ली, राजसत्ता एक्सप्रेस। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शुक्रवार को प्लाज्मा थेरेपी की तरफदारी करते देखे गये। एक तरफ जहां केंद्र सरकार इस थेरेपी से इलाज के लिये चेतावनी दे चुकी है वहीं केजरीवाल का मूड कुछ अलग ही नजर आया। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा कि प्लाजमा थेरेपी से मरीज ठीक हो रहा है। दिल्ली के सीएम ने स्वास्थय़ मंत्रालय से अलग सुर में बोलते हुये कहा कि एलएनजेपी अस्पताल में जिस कोरोना संक्रमित मरीज का इलाज चल रहा था वह बिल्कुल ठीक होकर अपने घर जा चुका है। साथ ही उन्होंने कहा कि जब मरीज यहां इलाज कराने के लिये आया था तब उसकी हालत काफी नाजुक थी। अपने इस बयान से दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक बात साफ कर दी कि वह इलाज के इस तरीके को फिलहाल छोड़ने वाले नहीं हैं।
हालांकि इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि प्लाज्मा थेरेपी के नतीजे अंतिम नहीं हैं, हम इस पर ट्रायल कर रहे हैं। केजरीवाल ने जोर देते हुये कहा कि दिल्ली में इस थेरेपी का ट्रायल पूरे जोर शोर से चलता रहेगा। आपको बता दें कि इससे पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्लाज्मा थेरेपी को केवल ट्रायल के तौर पर देखने के लिए कहा था। मंत्रालय ने आगाह करते हुए कहा था कि ये थेरेपी केवल रिसर्च और ट्रायल का हिस्सा है, अगर सही से गाइडलाइंस का पालन न किया गया, तो ये थेरेपी जानलेवा भी साबित हो सकती है।
प्लाज्मा कैसे हो सकता है खतरनाक?
दरअसल, डोनर के खून से प्लाज्मा को अलग किया जाता है। इस प्लाज्मा में एंटीबॉडी होते हैं, जो शरीर को किसी वायरस से लड़ने में मदद करते हैं। इसपर जयपुर स्थित सवाई मानसिंह अस्पताल में मेडिसिन डिपार्टमेंट के एक डॉक्टर का कहना है, ‘ब्लड और ब्लड कॉम्पोनेन्ट को चढ़ाने के खुद के कुछ रिएक्शन के चांसेस भी होते हैं। आपने सुना होगा कि खून चढ़ाते वक्त किसी व्यक्ति की मौत हो गई।’ बता दें कि केवल भारत में ही नहीं, अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के कई हिस्सों में भी प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल हो रहा है। इस थेरेपी का इस्तेमाल पहले भी कई बीमारियों के इलाज में किया जा चुका है।
साल 2014 में आए खतरनाक इबोला वायरस के इलाज में भी इसका इस्तेमाल हुआ था। इससे पहले 2009 में एचवनएनवन वायरस और 2003 की सार्स महामारी के वक्त भी प्लाज्मा थेरेपी पर भरोसा जताया गया था, लेकिन कोरोना के इलाज में ये कितनी कारगर साबित होगी, ये कहना अभी जल्दबाजी है।