कार्तिक पूर्णिमा पर बन रहा है शुभ संयोग, उठाएं अवसर का लाभ

हिन्दु धर्म में कार्तिक का महीना बहुत ही पवित्र माना गया है. शास्त्रों में इसे पुण्य मास कहा गया है. इस दिन स्नान दान का बहुत महत्व है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग सुबह-सवेरे उठकर गंगा स्नान करते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवताओं को प्रसन्न करने का एक सुनहरा अवसर होता है. घर में चल रही परेशानियों को इस दिन कुछ खास उपाय करके दूर की जा सकती है…

स्नान और दानः-

महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है. धर्म-शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें. इसी प्रकार दान देते समय हाथ में जल लेकर दान करें. आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर ले फिर जप यज्ञादि कर्म करें. स्नान दान के बाद श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें या फिर भगवान विष्णु के इस मंत्र को पढ़े.

नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे.

सहस्त्र माम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नमः..

सजाएं घर का मुख्य द्वारः-

सुबह उठकर घर की साफ-सफाई के बाद स्नान कर सात्विक मन से भगवान का नाम लेते हुए घर के मुख्य द्वारा पर रंगोली और हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर आम के पत्तों से आकर्षक रूप से सजाना चाहिए.

कार्तिक पूर्णिमा का दीपदानः-

धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा को दीप जलाने से भगवाव विष्णु की खास कृपा मिलती है. घर में धन, यश और कीर्ति आती है. इसलिए इस दिन विष्णु जी का ध्यान करते हुए मंदिर में, पीपल के पेड़, चौराहे या फिर नदी किनारे दिया जलाना चाहिए. इस दिन मंदिर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है. दीपदान मिट्टी के दीयों में घी या तिल का तेल डालकर करना चाहिए.

चंद्रमा की स्थिति सुधारने के लिएः-

शास्त्रों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा प्रतिकूल स्थिति में है तो उस व्यक्ति को कार्तिक पूर्णिमा के दिन किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को चावल दान करना चाहिए.

भोग लगाएः-

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है. इस बार कार्तिक पूर्णिमा शुक्रवार को पड़ रही है. शुक्रवार माता लक्ष्मी को समर्पित दिन माना जाता है. इसलिए इस दिन घर में सत्यनारायण की कथा का अनुष्ठान करके उन्हें खीर, हलवा, मखाने, सिंघाड़े का भोग लगाने से श्रीहरि विष्णु जी और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है. इस दिन जो भी दान किया जात हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है. मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है.

तुलसी पूजाः-

धर्मग्रंथों के अनुसार तुलसी को माता लक्ष्मी का रूप माना जाता है. इसलिए कार्तिक पूर्णिमा पर सुबह शाम दोनों समय तुलसी के पास देसी घी का दीपक जालाना चाहिए और हाथ में घी का दीपक लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए.

कार्तिक पूर्णिमा का महत्वः-

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा और गंगा स्नान की पूर्णिमा भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था. इसी वजह से इसे त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इसी के साथ कार्तिक पूर्णिमा की शाम भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार उत्पन्न हुआ था. साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है. मान्यता है कि गंगा स्नान के बाद गंगा नदी के किनारे दीपदान करने से दस यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है.

देव दीपावलीः-

दिवाली के 15 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन देव दीपावली मनाई जाती है. भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार में जन्म लेने और भगवान शिव द्वारा राक्षस तारकासुर और उनके पुत्रों का वध करने की वजह से मंदिरों में ढेरों दीपक जलाएं जाते हैं. देवताओं को चढ़ाए जाने वाले इन्हीं दीपों के पर्व को देव दीपावली कहा जाता है.

कार्तिक पूर्णिमा का कथाः-

पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर नाम का एक राक्षस था. उसके तीन पुत्र थे, तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया. अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए. तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी  से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की. ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो.

तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा. तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके. एक हजार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं और जो देवता तीनों नगरों को एक बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो. ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया.

तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए. ब्रह्माजी के कहने पर उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोगे का नगर बनाया गया. तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया. इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए.

इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया. इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनीं. चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बने, हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें. भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव. इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव.

भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा. यह वध कार्तिक पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाने लगा.

गुरु नानक जयंतीः

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था. इस दिन सिख धर्म से जुड़े लोग सुबह स्नान कर गुरुद्वारे में जाकर गुरु नानक देव की वचन सुनते हैं और धर्म के रास्ते पर चलन का प्रण लेते हैं. इस दिन शाम को सिख लोग अपनी श्रद्धा अनुसार लोगों को भोजन कराते है. पूर्णिमा के दिन पड़ने वाले गुरु नानक देव जी के जन्म के दिन को गुरु पर्व नाम से भी जाना जाता है.

शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए.

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