टीवी पर प्रवक्ताओं में हाथापाई : ये नेता हैं या बढ़िया किस्म के कलाकार ?

 

नई दिल्ली। एक टीवी डिबेट के दौरान शनिवार को दो राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं में मारपीट हुई. एक समाजवादी पार्टी का था दूसरा भारतीय जनता पार्टी का. सत्तारूढ़ दल वाले को भारी पड़ना था लिहाजा नोएडा पुलिस ने सपा प्रवक्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करकेअंदर कर दिया. सपा की सरकार होती तो शायद भाजपा वाला अंदर होता. इस घटना को लेकर बवाल मचा हुआ है और मामला सुर्ख़ियों में है.

न्यूज़ चैनल्स की डिबेट्स में ऐसा पहले भी हुआ है. नोक-झोंक, गाली-गलौज तो ना जाने कितनी बार बल्कि गेस्ट थप्पड़बाजी भी कर चुके हैं. सवाल यह है कि ऐसा करने वाले, ऐसा करने को क्यों मजबूर हुए ? डिबेट तो स्वस्थ परंपरा है तो फिर उसमें हाथ-पैर का इस्तेमाल क्यों हो रहा है.

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इसमें दो पक्ष होते हैं, एक टीवी वाले और दूसरे टीवी पर खुद को सबसे बड़ा प्रवक्ता साबित करने वाले कथित नेता. दूरदर्शन पर सलमा सुलतान और शम्मी नारंग को खबरें पढ़ते जिस पीढ़ी ने देखा है उसके लिए आज अंजना ओम कश्यप और अमीश देवगन एक कलाकार जैसे ही हैं. जो मेज पर हाथ मार-मारकर गेस्ट को नीचा दिखाने की कोशिश में जुटा रहता है। उसको यह ग़लतफ़हमी होती है कि पूरा देश अपने सवाल लेकर उसके पीछे खड़ा है और देश के सवालों का जवाब सिर्फ वही मांग सकता है. देश की संसद में कुछ तय नहीं होता, टीवी के सम्पादक ने जिस मुद्दे पर बहस डिसाइड करके एंकर को स्टूडियो में छोड़ दिया है, वह एंकर आज अपने आधे-पौन घंटे के शो में उस मुद्दे का हल निकाल कर रख देगा.

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दूसरी तरफ गेस्ट होते हैं. जिनके अंदर पहली काबिलियत तो यह होनी चाहिए कि वो लगातार बोलना जानते हों. चिल्लाने का माद्दा हो, सामने वाला कुछ भी कहे उन्हें अपनी बात का रट्टा लगाकर सामने वाले पर चढ़ बैठने का हुनर हासिल हो. किसी भी हद तक जाने को तैयार ऐसे चेहरे ही प्रवक्ता पद के लिए पूरी तरह उपयोगी माने जाते हैं. अगर किसी ने थोड़ी सेंसेबल बात तार्किक ढंग से शालीन तरीके से रखने की कोशिश की तो वो फेल यानि वह ठंडा किस्म का गेस्ट है, जिससे ना चैनल की टीआरपी बढ़नी है और ना ही उस पार्टी की. कांग्रेस के अखिलेश सिंह, बीजेपी के संबित पात्रा वगैरह हिंदी चैनल्स के गेस्ट सितारे इन्हीं खूबियों की वजह से बने हैं.

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जो ताजा घटना पेश आयी है, उसमें प्रवक्ताओं के नाम पर भिड़े चेहरों पर गौर फरमाएं. पहले गौरव भाटिया पेशे से वकील हैं, पिता वीरेंद्र भाटिया भी वकील थे.  आजीवन मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे. उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल बनाए गए, इतना ही नहीं मुलायम ने उन्हें सपा का नुमाइंदा बनाकर राज्य सभा में भी भेजा. पिता के दिवंगत होने के बाद गौरव भी समाजवादी पार्टी झंडा उठाए रहे. पारटी ने भी सम्मान दिया. अपनी लीगल विंग का अध्यक्ष बनाया और टीवी पर बोलने का हुनर देख अपना राष्ट्रीय प्रवक्ता भी बनाया. अब अखिलेश की सत्ता से विदाई और मोदी युग के उदय में गौरव को पता नहीं किस बात ने आकर्षित किया, सपा का झंडा फेंक बिलकुल विपरीत विचारधारा वाली पार्टी भाजपा का दामन थाम लिया और गरिमाविहीन टीवी डिबेट्स में बैठने के उनके हुनर को नयी पार्टी ने भी सराहा और राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया. मान लिया कि दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय सिद्धांत से लेकर आजतक की भाजपा का हर मुद्दा ‘उनका गौरव’ टीवी पर संभाल लेगा.

गौरव भाटिया से भिड़ा दूसरा चेहरा था अनुराग भदौरिया. हमेशा हरा कुर्ता पहनने वाले भदौरिया की पहली खासियत तो यह है कि वो इटावा के रहने वाले हैं, वही इटावा जो समाजवादी पार्टी के जनक मुलायम सिंह यादव का गृह नगर है. वह खुद बताते हैं कि पार्टी के मौजूदा मुखिया अखिलेश यादव से उनका बचपन के दिनों का सम्बन्ध है. अखिलेश को कृष्ण बताते हुए वो यह भी कह चुके हैं मैं तो सुदामा हूं. अखिलेश जी ने पढ़ाई-लिखाई में मेरी मदद की थी. बहराहल, नजदीकी है इसमें कोई दो राय नहीं है. क्योंकि, अखिलेश यादव की सिफारिश पर कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में भदौरिया को लखनऊ पूर्वी से टिकट दिया. सीट समझौते के तहत उसके खाते में थी और कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा.

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यह अलग बात है भदौरिया तमाम कोशिश के बावजूद वहाँ से हारे. समाजवादी पार्टी में उनका क्या योगदान है, इसपर पार्टी के ही तमाम नेता कुछ ठोस बताने की हालत में नहीं है. ग्रामीण क्रिकेट लीग का आयोजन उन्होंने किया था और इसके बाद बस यही कि वो टीवी पर बोलते हैं तो अखिलेश जी पसंद करते हैं .वैसे कुछ पुराने जानकार गाजियाबाद की मोहन मेकिन्स फैक्ट्री में उनकी ‘ठेकेदारी’ का जिक्र भी करते हैं.

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